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________________ ओम् : ११३ समूचे सौरमंडल के विकिरण हम तक पहुंचते हैं। विभिन्न मुद्राओं और विभिन्न आकृतियों में विभिन्न सौर विकिरणों को ग्रहण करने की क्षमता होती है। जब हम सिद्धासन की मुद्रा में होते हैं तो एक विशिष्ट प्रकार के विकिरणों को ग्रहण करते हैं। जब हम 'अ' का लिपि-विन्यास करते हैं, 'अ' को लिखते हैं तब 'अ' अक्षर लिखते ही उसके माध्यम से विशिष्ट प्रकार के विकिरणों को ग्रहण करने लग जाते हैं। जब 'उ' का लिपि-विन्यास करते हैं तब दूसरे प्रकार के विकिरणों को ग्रहण करने लग जाते हैं। इस परिस्थिति के संदर्भ में, वाक् और अर्थ के संदर्भ में, ज्ञान और शब्द के संदर्भ में जब हम ‘ओम्' पर विचार करते हैं तो लगता है कि यह शब्द अपने आप में बहुत मूल्यवान् है। शब्द की मूल्यवत्ता पर हमने दो दृष्टियों से विचार किया है। एक है-शब्द की प्राणशक्ति की समयोजना, प्राणशक्ति के साथ होने वाला शब्द का संबंध और दूसरी है—भावनात्मक विशेषता, उसके पीछे हमारी क्या भावना जुड़ी होती है। पहला प्रश्न है प्राणवत्ता का। हम जो कुछ कर रहे हैं, वह सारा का सारा कार्य प्राणशक्ति के द्वारा कर रहे हैं। तैजस शरीर के माध्यम से प्राण की धारा निःसृत होती है। वह हमारे समूचे जीवन-तंत्र को संचालित करती है। प्राण की धारा या विद्युत् की धारा जितनी बलवती होती है उतनी ही हमारी क्षमताएं बढ़ जाती हैं। हम निरन्तर श्वास लेते हैं। श्वास प्राण का ईंधन है। उसके द्वारा प्रज्वलित होता है। हम निरन्तर श्वास लेते हैं, इसीलिए हमारा तंत्र निरन्तर गतिशील रहता है। योगशास्त्रीय गणना के अनुसार एक व्यक्ति एक दिन में इक्कीस हजार छह सौ श्वास-प्रश्वास लेता है। जब वह श्वास लेता है तब एक प्रकार की ध्वनि होती है। श्वास छोड़ता है तब भी ध्वनि होती है। श्वास छोड़ते समय 'ह' की और लेते समय 'स' की ध्वनि होती है। इन सहज दोनों ध्वनियों के आधार पर 'सोऽहं' का विकास हुआ। इसे 'अजपाजप कहा जाता है। इसे जपने की जरूरत नहीं। यह बिना जपे जप हो जाता है, इसलिए इसका नाम 'अजपा' है। शिवस्वरोदय में 'हकार' को शिवरूप और 'सकार' को शक्तिरूप माना गया है। हठयोग में 'हकार' सूर्य या दक्षिण स्वर का प्रतिनिधित्व करता है और 'सकार' चन्द्र या बायें स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इन दोनों का साम्य होने पर परमात्मभाव का विकास होता है। तंत्रशास्त्र के अनुसार पूर्ण वर्णमाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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