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________________ 88 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा भोगना। अशुभ कर्म का विपाक आया और क्रोध कर लिया, यह है अशुभ कर्म को भोग लेना। हृदय रोग : भावात्मक कारण आज अनेक नई-नई बातों पर विज्ञान की खोजें हो रही हैं, जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है। हदय-रोग के बारे में कुछ तथ्य सामने आए हैं। हृदय रोग भी अशुभ कर्म के विपाक को भोगने से होता है। क्रोध, आक्रामक प्रतिस्पर्धा- ये हृदय रोग के मुख्य कारण बनते हैं। हृदय रोग के और अनेक कारण हैं किन्तु भावनात्मक कारणों में ये मुख्य कारण बनते हैं। उसका एक कारण है असहिष्णुता। किसी ने अप्रिय बात कह दी, व्यक्ति ने अपने मन में गांठ बांध ली और उसने सामने वाले व्यक्ति को क्षमा नहीं किया। आज की यह मुख्य समस्या है-क्षमा करना कोई जानता ही नहीं है। पहले क्षमा करना धर्म का तत्व था, आज यह चिकित्सात्मक तत्व बन गया है। जो हृदय-रोग या कैंसर जैसी बीमारियों से बचना चाहता है, उसे क्षमा करना सीखना चाहिए। अगर व्यक्ति क्षमा करना नहीं सीखेगा, गांठ बांध लेगा तो उसका विपाक किसी न किसी बीमारी के रूप में उभरकर सामने आएगा। जीवन की कला पुण्य की स्थिति में आदमी को कैसा जीवन जीना चाहिए और पाप का परिणाम सामने आए, तब कैसा जीवन जीना चाहिए-इस सन्दर्भ में जैन आचार्यों ने महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया। सुख और दुःख-इन दोनों स्थितियों में जो सम रहना नहीं जानता, आसक्ति और पीड़ा से मुक्त रहना नहीं जानता, वह न जीवन की कला को जानता है, न धर्म की कला को जानता है और न बन्धन से छुटकारा पाने की कला को जानता है। कर्म फल भोगने की कला ही धर्म की कला है। जो इस कला को सीख लेता है, वह बहुत दुःखों से बच सकता है। जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं, बीमारियां आ सकती हैं पर इन सारी परिस्थितियों में भी आदमी प्रसन्न रह सकता है। समयसार : जीवन जीने का दृष्टिकोण पैर से अपाहित एक भिखारी सदा प्रसन्न और खुश रहता था। एक व्यक्ति ने पछा-अरे भाई! तम भिखारी हो, लंगड़े भी हो। तम्हारे पास कुछ नहीं है, फिर भी तुम इतने खुश रहते हो। क्या बात है? वह बोला-बाबूजी! भगवान् का शुक्र है कि मैं अन्धा नहीं हूं। मैं चल नहीं For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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