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________________ अहिंसा के अछूते पहलु बात मान लो और मुझे विदा करो। दारिद्रय बोला-तुमने यह कैसी बात कही। सज्जन आदमी तो चले जाए और मैं यहां रह जाऊं। यह नहीं हो सकता । सज्जन को छोड़ना मैं नहीं जानता । तुम परदेश जाओगे तो मैं तुमसे आगे पहुंचूंगा। तुम्हारा संग छोड़ना मुझे कभी पसंद नहीं । पहले अपनी शांति हो दारिद्रय दरिद्र को छोड़ना नहीं चाहता और आदत शायद आदमी को छोड़ना नहीं चाहती। वह आदत को बदलना नहीं चाहता। जब तक हमारी प्रवृत्ति और हमारे व्यवहार के साथ इन तीनों का समन्वय नहीं होगा तब तक शांति की चर्चा सार्थक नहीं बनेगी। कहां प्रवृत्ति करना है, कहां निवृत्ति करना है और कहां उपेक्षा करना है। हमें बुरी आदतों को छोड़ना है, अच्छी आदतों का निर्माण करना है और अपने आप में संतुलित और मध्यस्थ रहना है। उपेक्षा का मतलब है-मध्यस्थता। यह समन्वित व्यवहार जब तक नहीं होता, हमें विश्वशांति की ही नहीं, अपनी शांति की बात करने का भी अधिकार नहीं होता। जो आदमी अपनी शांति ही नहीं पा सकता, वह विश्वशांति की बात क्या करेगा और क्या चर्चा करेगा। सबसे पहले अपनी शांति का प्रश्न है, उसके बाद विश्व शांति का प्रश्न पैदा होता है। प्रश्न है शक्ति-संतुलन का बड़ा जटिल प्रश्न है व्यवहार का। एक समाधान दिया गया कि सबसे पहले विचार का आग्रह छोड़ें। विचार के आग्रह को छोड़ने का उपाय निर्दिष्ट करते हुए कहा गया-सह-अस्तित्व का बोध जितना प्रखर होगा, वैचारिक आग्रह छूटता चला जाएगा। सापेक्षता का दृष्टिकोण जितना प्रखर होगा, विचार का आग्रह छूटता चला जाएगा। एक आदमी एक बात सोचता है और दूसरा आदमी दूसरी बात सोचता है। किसका विचार सत्य माने ? एक यह सोचता है कि अणुअस्त्रों का निर्माण किए बिना आज विश्वशांति नहीं हो सकती। विश्व के बहुत बड़े भाग का चिन्तन है-शक्ति-संतुलन के बिना शांति नहीं हो सकती। यदि अमेरिका के पास अणअस्त्रों का विशाल भंडार है और किसी दूसरे के पास नहीं है तो युद्ध का अधिक खतरा है। जितना अणुअस्त्रों का भंडार अमेरिका के पास है उतना ही विशाल भंडार यदि रूस के पास है तो युद्ध का खतरा टल जाता है । दो मार्ग : दो दृष्टिकोण आज का चिन्तन है शक्ति-संतुलन। शक्ति-संतुलन के बिना शान्ति नहीं हो सकती। पूछा जाए-इतना अणुअस्त्रों का अंबार क्यों लगाया जा रहा है ? उत्तर होगा—विश्वशांति के लिए। अशांति के लिए बिलकुल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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