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________________ वैचारिक जीवन और समन्वय ८९ है वह अपने भंडार को छोड़ना नहीं चाहता, कम करना नहीं चाहता और नई बात को लेना नहीं चाहता। कैसे विश्वशांति हो सकती है ? जैसे ही छोड़ने की बात आई, समाप्ति का संकल्प हुआ कि अणुअस्त्रों के भंडार को कम करना है। पहला कदम उठा और व्यवहार बदलना शुरू हो गया। व्यवहार की एक छोटी-सी चिनगारी आई-निवृत्ति करना है, कुछ छोड़ना है, नष्ट करना है। जो भंडार भरा हुआ है उसे नष्ट कर देना है। थोड़ा परिवर्तन शुरू हो गया, व्यवहार बदलना शुरू हो गया। .. निवृत्ति : प्रवृत्ति रूस में अब तक एक अधिनायकवाद चल रहा था। एक अलग प्रकार का व्यवहार था, एक लोहावरण था। प्रजातंत्र के वे राष्ट्र, जो लोकतन्त्र में विश्वास करते हैं, रूस से घबराते हैं। आज रूस में वातावरण बदल गया है, बदल रहा है। जहां अधिनायकवाद था वहां लोकतन्त्र की प्रथम किरण अपना प्रकाश फैला रही है। राष्ट्रपति प्रणाली आ रही है। अपने निर्णय के विपक्ष में बोलने का अधिकार दिया जा रहा है । विरोधी बात को सुनने का, समझने का और सहन करने का वातावरण तैयार किया जा रहा है। निवृत्ति से यह व्यवहार बदला। जो तानाशाही और अधिनायकवाद था उससे निवृत्ति हुई है और लोकतंत्रीय विधि में प्रवृत्ति हुई है। एक की निवृत्ति और दूसरे की प्रवृत्ति से व्यवहार बदलता है। पसंद नहीं है आदत को छोड़ना लोग जिस बात को पकड़ लेते हैं, उसे छोड़ना नहीं चाहते । आदतें जिसकी जो बन गईं, वे बन ही गई, उन्हें छोड़ना किसी को पसन्द नहीं है । सबसे ज्यादा अगर कोई नापसन्द चीज है तो वह है अपनी आदत को छोड़ने की बात । रेडियो सुनना पसन्द हो सकता है । पसंद है टी० वी० देखना, पसंद है स्वादिष्ट भोजन करना और गप्पे हांकना। सब बातें पसंद आती हैं एक को छोड़कर । यदि अपनी आदत को कोई बदलने को कहे तो वह पसंद नही है। अपनी आदत से इतना मोह और इतना चिपकाव हो गया कि उसे छोड़ना ही नहीं चाहते। एक प्रसिद्ध कहानी है । एक दरिद्र आदमी था। उसने निश्चय कियाकहीं बाहर चला जाऊं और कमाई कर पेट भरूं । फिर उसने सोचा-चला तो जाऊंगा पर यह दारिद्रय साथ ही चलेगा तो फिर जाने से फायदा क्या होगा ? वह एकांत में बैठा। एक योजना बनाई। उसने दारिद्र्य से कहादारिद्र्य ! तुम बहुत अच्छे आदमी हो । मेरी बात सुनो । दारिद्र्य ने कहा .-बोलो क्या बात है ? बात यह है कि मैं परदेश जाना चाहता हूं। तुम मेरा एक काम करो; यहां बैठे रहो और मेरे घर की रखवाली करो। यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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