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________________ ७. धर्म की धारणा के हेतु संसार के मूल बिन्दु दो हैं-(१) जन्म और (२) मृत्यु । ये दोनों प्रत्यक्ष हैं । किन्तु इनके हेतु हमारे प्रत्यक्ष नहीं हैं। इसीलिए इनकी एषणा के लिए हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। धर्म की विचारणा का आदि-बिन्दु यही है। ___ जैसे अण्डा बगुली से उत्पन्न होता है और बगुली अण्डे से उत्पन्न होती है, उसी प्रकार तृष्णा मोह से उत्पन्न होती है और मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है। राग और द्वेष-ये दोनों कर्म-बीज हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है । वह जन्म और मृत्यु का मूल हेतु है और यह जन्म-मरण की परम्परा ही दुःख है।' दुःखवादी दृष्टिकोण धर्म की धारणा के अनेक हेतु हैं। उनमें एक मुख्य हेतु रहा हैदुःखवाद। अनात्मवाद के चौराहे पर खड़े होकर जिन्होंने देखा, उन्होंने कहा-संसार सुखमय है। जिन्होंने अध्यात्म की खिड़की से झांका, उन्होंने कहा-संसार दु:खमय है । जन्म दुःख है, जरा दुःख है, रोग दुःख है, मृत्यु दुःख है, और क्या, यह समूचा संसार ही दुःख है। यह अभिमत केवल भगवान् महावीर व उनके पूर्ववर्ती तीर्थङ्करों का ही नहीं रहा, महावीर के समकालीन अन्य धर्माचार्यों का अभिमत भी यही था। महात्मा बुद्ध ने इन्हीं स्वरों में कहा था---'पैदा होना दुःख है, बूढ़ा होना दुःख है, व्याधि दुखः है, मरना दुःख है। महावीर और बुद्ध-ये दोनों श्रमण परम्परा के प्रधान शास्ता थे। उन्होंने जो कहा, वह महर्षि कपिल के सांख्य दर्शन' और पतञ्जलि' के १. उत्तराध्ययन, ३२।६-७ । २. वही, १६।१५। ३. महावग्ग, ११६।१५। ४. सांख्य दर्शन, १११ : अत्र त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्तपुरुषार्थः । ५. पातंजल योगसूत्र, २०१४-१५: ते ह्लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात् ।। परिणामतापसंस्कारदुःखैर्गुणवृत्तिविरोधाच्च दुःखमेव सर्व विवेकिनः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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