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________________ संस्कृति के दो प्रवाह मिलती हैं, किन्तु इनका वर्गीकृत रूप उत्तरकाल में ही हुआ। महाव्रतों की भावनाएं उनकी स्थिरता के लिए हैं। प्रत्येक महाव्रतों की पांच-पांच भावनाएं हैं। अहिंसा महाव्रत १. ईर्यासमिति । २. मन-परिज्ञा। ३. वचन-परिज्ञा। ४. आदान-निक्षेप समिति । ५. आलोकित-पान-भोजन । सत्य महाव्रत १. अनुवीचि-भाषण। २. क्रोध-प्रत्याख्यान । ३. लोभ-प्रत्याख्यान। ४. अभय (भय-प्रत्याख्यान)। अचोयं महावत १. अनुवीचि-मितावग्रह-याचन । ४. अवग्रह का बार-बार अवधारण । २. अनुज्ञापित पान-भोजन। ५. साधार्मिकों से अनुवीचि मिताव ३. अवग्रह का अवधारण। ग्रह याचन । ब्रह्मचर्य महाव्रत १. स्त्रीकथा-वर्जन। २. स्त्रियों की इन्द्रियों का अवलोकन-वर्जन । ३. पूर्वक्रीड़ित काम की स्मृति का वर्जन । ४. अतिमात्र और प्रणीत पान-भोजन का वर्जन । ५. स्त्री आदि से संसक्त शयनासन का वर्जन । अपरिग्रह महाव्रत १. मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द में समभाव । २. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप में समभाव । ३. मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्ध में समभाव । ४. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रस में समभाव। ५. मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्श में समभाव । १. तत्त्वार्थ, ७।३ : तत्स्थर्यार्थभावनाः पंच पंच । २. आयारचूला, १५॥४४-७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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