SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मवाद और लेश्या १२७ करण या पूर्ण-त्याग के आधार पर अभिजातियों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है। गौतम बुद्ध ने आनन्द से कहा- 'मैं भी छह अभिजातियों की प्रज्ञापना करता है १. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक (नीच कुल में उत्पन्न) हो, कृष्ण धर्म (पाप) करता है। २. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो, शुक्ल-धर्म करता है। ३. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो, अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण को पैदा करता है। ४. कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक (ऊंचे कुल में उत्पन्न) हो, शुक्ल धर्म (पुण्य) करता है। ५. कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो, कृष्ण-धर्म करता है। ६. कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो, अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण को पैदा ___ करता है। यह वर्गीकरण जन्म और कर्म के आधार पर किया हुआ है। इसमें चाण्डाल, निषाद आदि जातियों को 'शुक्ल' कहा गया है। कायिक, वाचिक और मानसिक दुश्चरण को 'कृष्ण-धर्म' और उनके सुचरण को 'शुक्लधर्म' कहा गया है। निर्वाण न कृष्ण है और न शक्ल । इस वर्गीकरण का ध्येय यह है कि नीच जाति में उत्पन्न व्यक्ति भी शुक्ल-धर्म कर सकता है और उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति कष्ण-धर्म भी करता है। धर्म और निर्वाण का सम्बन्ध जाति से नहीं है। छह अभिजातियों के इन दोनों वर्गीकरणों का लेश्या के वर्गीकरण से कोई सम्बन्ध नहीं है। वह सर्वथा स्वतंत्र है। लेश्याओं का सम्बन्ध एकएक व्यक्ति से है। विचारों को प्रभावित करने वाली लेश्याएं एक व्यक्ति के एक ही जीवन में काल-क्रम से छहों हो सकती हैं। लेश्या का वर्गीकरण छह अभिजातियों की अपेक्षा महाभारत के वर्गीकरण के अधिक निकट है। सनत्कुमार ने दानवेन्द्र वृत्रासुर से कहा'प्राणियों के वर्ण छह प्रकार के हैं-(१) कृष्ण, (२) धूम्र, (३) नील, (४) रक्त, (५) हारिद्र और (६) शुक्ल । इनमें से कृष्ण, धूम्र और नील वर्ण का सुख मध्यम होता है। रक्त वर्ण अधिक सह्य होता है। हारिद्र वर्ण १. (क) अंगुत्तरनिकाय, ६।६।३, भाग ३, पृ० ६३-६४ । (ख) दीघनिकाय, ३३१०, पृ० २६५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy