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________________ संस्कृति के दो प्रवाह अनुसार आत्मा शाश्वत है । मृत्यु के पश्चात् उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता, केवल उसका रूपान्तरण होता है । वर्तमान जीवन अतीत और अनागत श्रृङ्खला की एक कड़ी मात्र है । अतः इहलोक जितना सत्य है, उतना ही सत्य है परलोक । भावी जीवन वर्तमान जीवन का प्रतिबिम्ब होता है । इस धारणा से प्रेरित हो यह कहा गया 'जो मनुष्य लम्बा मार्ग लेता है और साथ में सम्बल नहीं लेता, वह भूख और प्यास से पीड़ित चलता हुआ दुःखी होता है ।' 'इसी प्रकार जो मनुष्य धर्म किए बिना परभव में जाता है, वह व्याधि और रोग से पीड़ित होकर जीवन-यापन करता हुआ दुःखी होता है ।' ६४ 'जो मनुष्य लम्बा मार्ग लेता है, किन्तु सम्बल के साथ । वह भूखप्यास से रहित होकर चलता हुआ सुखी होता है ।' 'इसी प्रकार को मनुष्य धर्म की आराधना कर परभव में जाता है, वह अल्पकर्म वाला और वेदना रहित होकर जीवन-यापन करता हुआ सुखी होता है ।" आचार्य गद्दभालि ने राजा संजय से कहा था - ' - 'राजन् ! तू जहां मोह कर रहा है, वह जीवन और सौन्दर्य बिजली की चमक के समान चञ्चल है | तू परलोक के हित को क्यों नहीं समझ रहा है ?" धर्म केवल परलोक के लिए ही नहीं, इहलोक के लिए भी है । किन्तु इहलोक की पवित्रता से परलोक पवित्र बनता है, अतः परिणाम की दृष्टि से कहा जाता है कि धर्म से परलोक सुधरता है । इहलोक और परलोक के कल्याण में परस्पर व्याप्ति है । परलोक का कल्याण इहलोक का कल्याण होने पर ही निर्भर है। सचाई तो यह है कि धर्म से आत्मा शुद्ध होती है, उससे इहलोक और परलोक सुधरते हैं, यह व्यवहार की भाषा है । कुछ धार्मिक लोग ऐहिक और पारलौकिक सिद्धियों के लिए धर्म का विधान करते थे, उसका भगवान् महावीर ने विरोध किया और यह स्थापना की कि धर्म केवल आत्म शुद्धि के लिए किया जाए ।' महर्षि कणाद के अभिमत में धर्म से अभ्युदय और निःश्रेयस् - दोनों १. उत्तराध्ययन, १६।१८-२१ । २ . वही, १८ ।१३ । ३. दशवेकालिक, ६४ सूत्र ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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