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________________ ४ साध्वाचार के सूत्र ४. दर्शन - निषेध - वासना की दृष्टि से स्त्री के अंग-प्रत्यंगों को नहीं देखना । ५. श्रवण - निषेध - स्त्री-पुरुष की काम क्रीड़ा के समय के विकारोत्पादक शब्द नहीं सुनना । भींत एवं पर्दा आदि के अंतर से भी जहां ऐसे शब्द सुनाई दें, वहां नहीं ठहरना । ६. स्मरण-वर्जन- पूर्व अवस्था में की हुई काम करना । ७. सरस आहार-त्याग-विकार उत्पन्न करने वाले सरस- भोजन का त्याग करना । ८. अतिआहार - निषेध - साधारण आहार (भोजन) भी मात्रा से अधिक नहीं करना । ९. विभूषा - परित्याग - स्नान - विलेपन- तिलकादि द्वारा शरीर को विभूषित नहीं करना । १०. शब्दादि - - त्याग — विकारोत्पादक शब्द, रूप, गंध, रस एवं स्पर्श में आसक्त नहीं बनना । इन दश नियमों की साधना ब्रह्मचर्य की रक्षा में सहायक होती है। इन्हें ब्रह्मचर्य के दस समाधिस्थान भी कहा गया है तथा ब्रह्मचर्य की नव गुप्ति ( बाड़) एवं दसवां कोट भी माना गया है । प्रश्न १६. अपरिग्रह महाव्रत किसे कहते हैं ? -क्रीड़ा का स्मरण नहीं उत्तर - अल्प मूल्य, बहुमूल्य, स्थूल सूक्ष्म एवं सचित्त- अचित्त आदि समस्त परिग्रह का जीवनभर के लिए तीन करण- तीन योग से त्याग करना अपरिग्रह महाव्रत है। किसी भी वस्तु में मूर्च्छा - आसक्ति का होना परिग्रह है । वस्तुएं दो प्रकार की होती हैं - बाह्य और आभ्यन्तर । दोनों प्रकार की वस्तुओं में जीव की आसक्ति होती है अतः परिग्रह के भी दो भेद हो गये - बाह्य परिग्रह एवं आभ्यन्तर - परिग्रह | - प्रश्न १७. बाह्य - परिग्रह कितने प्रकार का होता है ? उत्तर - नव प्रकार का होता है ' - १. क्षेत्र - खुली - जमीन । २. वास्तु – ढकी - जमीन ( घर - हाट आदि) । ३. हिरण्य - चांदी । ४. सुवर्ण - सोना । ५. धनजवाहरात या नकद धन । ६. धान्य - सभी प्रकार के धान्य एवं खाद्य १. आवचू २ पृ. २६२, हरिभद्रीय आवश्यक अ. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
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