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________________ ७० महाप्रज्ञ-दर्शन मूल्यांकन इस आधार पर नहीं होगा कि उसके पढ़ाए हुए छात्र कितने बड़े विद्वान् बने, बल्कि इस आधार पर होगा कि उसने कितनी बड़ी संख्या में छात्रों को पढ़ाया। उपभोक्तृ-संस्कृति का दुष्परिणाम यह हुआ कि गुणवत्ता गौण हो गई। स्पष्ट है कि इसका उपभोक्ता पर दुष्प्रभाव पड़ा। लोकतंत्र की समस्याएं । राजनैतिक दृष्टि से पूंजीवाद प्रजातंत्र का हमजोली है। प्रजातंत्र में संख्या सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, उसमें उचित अनुचित का निर्णय संख्या के आधार पर होता है, तर्क के आधार पर नहीं। प्रजातंत्र केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं आया, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं के स्तर पर भी निर्णय प्रजातांत्रिक ढंग से लेने की बात चली तो गुटबंदी को बढ़ावा मिलने लगा। किसी भी संस्था का सबसे बड़ा गुट जिसके साथ हो जाता है, वह पद हथिया लेता है। बहुमत को अपने साथ लेने के लिए सत्य उतना मददगार सिद्ध नहीं होता, जितना मददगार राग-द्वेष को भड़काकर लोगों को एकजूट कर लेना होता है। फलतः राजनीति में सम्प्रदाय, जाति, प्रान्त और भाषा जैसे तत्त्व महत्त्वपूर्ण हो गये। सत्य और लोककल्याण गौण हो गया। तात्कालिक हितों के सामने दूरगामी परिणाम निर्बल सिद्ध हुए। फलतः ऐलोपैथी की दवाई की तरह तात्कालिक समस्या का समाधान हो जाता है, किंतु कुल मिलाकर लम्बी अवधि में अनेक नई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं और अन्ततोगत्वा सौदा घाटे का ही सिद्ध होता है। उदाहरणतः आरक्षण की नीति को ले सकते हैं। प्रारम्भ में आरक्षण का आशय समाज के उस वर्ग को ऊपर उठाना था, जो ऐतिहासिक कारणों से सदियों से दबा हुआ था। उसका आशय मूलतः वोट बटोरना नहीं था। किंतु आज स्थिति यह है कि और तो और ब्राह्मणों तक में आरक्षण की मांग को लेकर विधिवत् मंच गठित हो चुके हैं। अब आरक्षण का आधार कल्याण की भावना न रहकर वोट बैंक बनाना हो गया। जो भी समूह राजनैतिक दलों को वोट न देने की धमकी देकर आतंकित कर सकता है, वह आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकता है। समाजवाद पूंजीवादी व्यवस्था और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के ये दोष इतने स्पष्ट थे कि इसका विरोध होना अवश्यंभावी था। यह विरोध भी सामान्य रूप से नहीं हुआ बल्कि एक सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि पर टिककर किया गया। यह विरोध समाजवाद की ओर से आया। समाजवाद और पूंजीवाद में यद्यपि एक बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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