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________________ सामाजिक-आर्थिक तंत्र के चार मॉडल खपाने के लिए वह बाजार में विज्ञापनों के द्वारा उस माल की कृत्रिम आवश्यकता उत्पन्न कर देता है। अखबार और दूरदर्शन जैसे साधन मुख्यतः ऐसे विज्ञापनों के आधार पर चल रहे हैं। इन विज्ञापनों के पीछे मानसिकता यह रहती है कि एक झूठ को सौ बार दोहराने से झूठ सच बन जाता है। विज्ञापन की एजेंसियां माल का विज्ञापन करने में ऐसे उपाय बरत रही है जिनसे मनुष्य की हिंस्र वृत्ति, क्रूरता और वासना जागे और संवेदनशीलता कुंठित हो जाये। इस प्रकार विज्ञापन केवल माल ही नहीं बेच रहे, कुत्सितता भी बेच रहे हैं। विज्ञापनों पर जो व्यय होता है वह उपभोक्ता से ही वसूल किया जाता है और क्योंकि विश्वास यह है कि पदार्थ गुणवत्ता के कारण नहीं अपितु विज्ञापन के कारण बिकता है, इसलिए सुधार पदार्थ में नहीं किया जाता बल्कि बल इस बात पर रहता है कि विज्ञापन को अधिक से अधिक प्रभावी कैसे बनाया जाये। ___ मजेदार बात यह है कि विज्ञापन के आधार पर केवल पदार्थ ही नहीं बिकते, विद्या और धर्म भी बिकता है। विश्व स्तर पर जो धर्मान्तरण हो रहे हैं, उसमें धर्म की तर्कसंगता और आन्तरिक क्षमता के योगदान की अपेक्षा प्रदर्शन का योगदान कहीं अधिक है। विद्या चेतना का स्फुरण नहीं रह गई है। अधिकांश लेखक पुस्तक की गुणवत्ता को सुधारने की जगह इसके लिए अधिक चिन्तित रहते हैं कि पुस्तक के संबंध में बड़े-बड़े लोगों की अनुकूल सम्मतियां कैसे प्राप्त कर ली जाये। यदि कोई सामान्य पाठक सहजभाव से उस पुस्तक. में प्रकट किये गये विचारों के संबंध में अंगुली उठाता है तो उसका कथन इसलिए अर्थहीन हो जाता है कि बड़े-बड़े विद्वानों की सम्मति उस पुस्तक के संबंध में पहले से ही अंकित रहती है। मन ही मन सब इस बात को जानने और मानने लगे हैं कि ये सम्मतियां एक टकसाली भाषा में लिखी जाती है, जिसके शब्दों का कोई अर्थ नहीं । ऐसी स्थिति में यह संदिग्ध हो चला है कि “सत्यमेव जयते नानृतं” का उद्घोष कहीं मन को बहलाने के लिए एक अच्छा ख्याल तो नहीं। उपभोक्तृवाद की विकृतियां ___ उपभोक्तृ-संस्कृति पूंजीवाद की देन है। इस संस्कृति का फल है गुणवत्ता के स्थान पर परिमाण पर बल । देशी बाजरा अधिक गुणकारी है, किंतु परिमाण में संकर बाजरा अधिक उत्पन्न होता है। इसलिए बाजार में संकर बाजरा मिलेगा, देसी बाजरा नहीं मिलेगा। शिक्षा के क्षेत्र में एक अध्यापक का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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