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________________ २६० • ध्यानं चेतनावबोधो, न तु शून्यता ध्यान का अर्थ शून्यता नहीं है। ध्यान का अर्थ है - चेतना के प्रति जागना और फिर उसका साक्षात्कार करना । • चेतनप्रवाहैक्यमेकाग्रता चेतना का एक ही प्रवाह में प्रवाहित हो जाना एकाग्रता है । ० त्यागी विरक्तो ध्यानाधिकारी त्याग और वैराग्य शब्द भिन्न, पर तात्पर्यार्थ में एक हैं। जिसमें त्याग और वैराग्य की भावना जाग गई, वह अध्यात्म की ओर अभिमुख हो गया। वही यथार्थ में ध्यान का अधिकारी है। हम त्याग और वैराग्य को मजबूत बनायें, तभी ध्यान की निर्मल धारा आगे बढ़ेगी और जीवन में नया आनंद, नया अनुभव और नई सरसता पैदा करेगी। इससे जीवन में निरन्तर प्राणसंचार होता रहेगा और तब व्यक्ति शक्ति और प्रेम का जीवन जीने में समर्थ होगा । ० निषेधात्मकभावनिवारणार्थं प्रेक्षाध्यानम् प्रेक्षाध्यान के प्रयोग का अर्थ है- निषेधात्मक भाव से बचना | ० स्वं प्रति जागरण ध्यानम् ध्यान का मतलब है- अपने प्रति जागरूक रहना । महाप्रज्ञ - दर्शन • द्वन्द्वसहिष्णुत्वार्थं ध्यानम् O ध्यान का अर्थ है - उस चेतना का विकास, जिसके द्वारा प्रिय और अप्रिय; अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों को समान भाव से झेल सकें । • चलं ज्ञानमचलं ध्यानम् चंचलता ज्ञान है। अचंचलता ध्यान है । • ध्यानप्रसङ्गे देवपिशाचरक्षांसि निषेधात्मकभावाः प्राचीन साहित्य में देवों के साथ जुड़ी हुई घटनाओं का प्रचुर विवरण मिलता है। यदि ध्यान और साधना के संदर्भ में इनकी व्याख्या की जाए तो वहां देव, पिशाच या राक्षस नहीं टिकेंगे वे सारी घटनाएं निषेधात्मक भावों की घटनाएं होंगी। देव, राक्षस और पिशाच यह हमारा निषेधात्मक विचार ही है । o 3. बसायो ज्ञानस्रोतः । सो वनस्पतौ विशेषः । तेन परचित्तज्ञानम् । हमारे ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत है -अध्यवसाय । वनस्पति में अध्यवसाय का सीधा परिणाम होता है, इसलिए उन जीवों में जितनी पहचान, जितनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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