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________________ ३८ जैनदर्शन नौ वस्तुओं का ज्ञान अत्यन्त उपयोगी होने से ये 'तत्त्व' कहे गए हैं। इन तत्त्वों में आए हुए जीव एवं अजीव (जड़) तत्त्व द्वारा निखिल विश्व के अखिल पदार्थों का निर्देश करके जीव का मुख्य साध्य मोक्ष सूचित किया और उसके बाधक-साधक मार्ग दिखलाए । बाधक में बन्ध और बन्ध का कारण आस्रव, साधक में संवर तथा निर्जरा बताए गये । नौ तत्त्वों के प्रकरण में आत्मा, पुण्य-पाप, परलोक, मोक्ष और ईश्वर सम्बन्धी जैन विचारों का दिग्दर्शन किया गया है । कल्याणसाधन का मार्ग आत्मा, परमात्मा, पुण्य-पाप और पुनर्जन्म पर श्रद्धा रखने से सरल बनता है । एकमात्र प्रत्यक्ष प्रमाण मानने से नहीं चलता । केवल प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर तत्त्वशोधन का कार्य शक्य नहीं है । केवल प्रत्यक्षप्रमाणवादी को भी धूम के दर्शन से अग्नि होने का अनुमान स्वीकारना पड़ता है । नहीं दिखने से वस्तु का अभाव मानना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता । बहुत सी वस्तुओं का अस्तित्व होने पर भी दृष्टिगोचर नहीं होतीं, इससे उनका अभाव सिद्ध नहीं हो सकता । आकाश में उडता हुआ पक्षी इतना ऊँचा गया कि वह आँखो से ओझल हो गया, इससे उस पक्षी का अभाव सिद्ध नहीं होता । हमारे पूर्वज हमें नहीं दिखते, अतः वे नहीं थे ऐसा कहने का साहस कोई नहीं कर सकता । दूध में मिलाया गया पानी नहीं दिखाई देता इससे उसका अभाव नहीं माना जा सकता । सूर्य के प्रकाश में तारें नहीं दिखते, अत: वे नहीं हैं ऐसा कहने का कोई साहस नहीं कर सकता । इस पर से ऐसा समझा जा सकता है कि इस विश्व में जिस प्रकार इन्द्रियगोचर पदार्थ हैं उसी प्रकार इन्द्रियातीत (अतीन्द्रिय) पदार्थों का भी अस्तित्व है। जिस बात का अपने को अनुभव हुआ हो उसे मानना और दूसरे के अनुभव की बात को इस पाठ का अर्थ इस प्रकार है :सामान्यतः धर्म के तीन रूप हैं-कारण, स्वभाव, और कार्य । इन में से सदनुष्ठान यह धर्म का कारण है। स्वभाव दो प्रकार का है : आश्रवरूप और अनाश्रवरूप । जीव में होनेवाले शुभ कर्मपरमाणुओं के उपचय को आश्रवरूप स्वभाव और पूर्वोपाजित कर्मपरमाणुओं के झड जाने को अनाश्रवरूप स्वभाव कहते हैं । xxx और जीव में जो विशेष सुन्दरताएँ हैं वह धर्म का कार्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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