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________________ ८० मनुजौघं विसृज्य तम् ,, 5.25b मनुना मानवेन्द्रेण I. 5.6c मनुर्दण्डधरः प्रभुः VII. 79.5b मनुर्मनुष्याञ्जनयत् III. 14.29a मनुर्वैवस्वतः स्मृतः I. 70.20d , स्वयम् II. II0.6b मनुष्य देहाभ्युदयं विहाय IV. 24.32c मनुष्यभावं संप्राप्तौ , 31.45c मनुष्ययोः प्राकृतयोः सुवीर्यः VI. 15.7d मनुष्यलोकमास्थाय VII. 56.24c मनुष्या जीवितक्षयम् II. I05.24d , वानरा ऋक्षाः VI. 35.23a मनुष्येभ्यो न याचितम् ,, 94.29d मनुष्यैरावृता भूमिः II. I03.44C मनुस्तं दीप्ततेजसम् VI. I28.64d मनं चाप्यनलामपि III. 14.12b मनुः पुत्रमुवाच ह VII. 79.7d ,, पुत्रं समाधिना , ,, IIb ,, प्रजापतिः पूर्वम् I. 70.21a मनोजवं कामगमम् VII. 15.37a ,, गमिष्यामि I. 76.150 ,, महाकायम् VI. 69.29c मनोजवः संयति भीमविक्रमः V. 47.23d मनोजवाष्टाश्ववरैः सुयोजितम् ,, ,, 4d मनोज्ञगन्धेः प्रियकैरनल्पैः IV. 30.34a मनोज्ञरूपा लक्ष्यन्ते II. 93.19c मनोझं नन्दनोपमम् VI. 39.8b मनोज्ञः प्रतिभाति मे II. 93.18b मनोज्ञा यत्र ता दृष्टा I. I0.25a मनोज्ञां काञ्चनवतीम् VI. 39.24a मनोज्ञोऽयं गिरिः सौम्य II. 56.14a मनो दधे महाबल: VI. 56.12d , न प्रतिहन्यते II. 52.25d मनोऽनिलसुपर्णानाम् VII. 34.39c मनो निवृत्तं हतजीवितेन IV. 24:4d मनोऽभिरामं शरदिन्दुनिर्मलम् V. 8.6c मनोऽभिरामा रामास्ता: VII. 42.22c मनो भूयः प्रकर्षति VI. I.I2b :, मम विषीदति I. 74.IIb ,, मातुः प्रहर्षयन् VI. I27.49d ,, मे बाधते दृष्ट्वा II. 94.30 ,, ,, संप्रहृष्यति VI. 2.24d मनोरथः स्यादिति चिन्तयामि V. 32.13a । मनोरथो महानेष I. 42.22a , ,, III. II.33c मनोरथोऽयमिष्टोऽस्या III. 19.24a मनोरममसंबाधम् V. 6.42c मनो लक्ष्मण संप्रति III. 75.5d मनोवाकायसंमतान् II. 94.18d मनो विस्मयमागतम् III. 43.23b ,, हरति नित्यशः IV. 8.28d मनोहरमतीव च I. 28.18b मनोहरमनुत्तमम् VII. 15.39b मनो हरसि मे भीरु V. 20.29c ,, ,, ,, रामे III. 46.210 मनोहरस्निग्धवर्णः III. 42.19a मनोहरे काश्चन चारुरूपम् V. 7.5b ,, दर्शनीयम् III. 42.20c ,, सर्वसुखम् VII. 13.6a मनोहराश्चापि पुनर्विशालाः V. 7.2c मनो हि ते ज्ञास्यति मानुषं बलम् IV. 32.22c ,, ,, हेतुः सर्वेषाम् V. II.42a मन्त्रकर्मचियुक्तानि VI. 12.8c मन्त्रग्राममनुत्तमम् I. 27.22d मन्त्रग्राम गृहाण त्वम् , 22.13a मन्त्रशं च विधिज्ञं च VI. 38.2c मन्त्रज्ञान्मन्त्रकुशल: IV. 32.2c मन्त्रज्ञाश्चेगितज्ञाश्च I. 7.Ic मन्त्रज्ञो मन्त्रयामास ,, 33.10a | मन्त्रदृष्टेन कर्मणा , I5.5d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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