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________________ मनसा ब्रह्मणा सृष्टे VI. I27.36a मनश्च सुसमाहितम् II. 22.14b ,, ब्रह्मनिर्मितम् ,, ,, 30b मनश्चेष्टा च मे तथा IV. 67.26b ,, मे भविष्यध्वम् I. 27.2/c मनःकर्णसुखा वाचः II. 6.14c , यस्समीक्षितम् VI. 64.24d मनःकान्तं महावनम् V. 61.Iod ,, यदभीप्सितम् I. 65.12d मनःकान्तानि माल्यानि IV 43.47c ,, यद्यथेप्सितम् VII. I0.25b मनःपरिगृहीतां ताम् V. 42.21a , संप्रचक्रमे VI. I07.10d मनःप्रह्लादनानि च III. 16.39d ,, संप्रधार्य तत् II. I09.21b मनःप्रह्लादयन्निव V.58.13b. मनसाऽस्मि गतो यत्त्वाम् IV. 66.18a मनःशिलायास्तिलकम् V. 65.23c मनसि प्रतिसंजातम् II. 22.70 मनःशिलायास्तिलकः , 40.5a मनसेव कृतां लङ्काम् V. 2.22a. मनःषष्ठेषु राघव VII. 96.21b ,, ,, ,, VI. 24.9c मनःश्रमं गच्छति निश्चितार्थम् V. 48.6d ,, प्रकल्पितैः V. 49.3d मनःसमाधानविचार चारिणम् ,, 8.4b , विनिर्मितम् I. I3.38d मनः समाधाय जयोपपत्तो IV. 3.39c मनसैवोदिताः समम् IV. 27.24d ,, , तु शीघ्रगामिनम् V. 8.5a मनसो न प्रणश्यति V. 15.48d , ,, महानुभावः IV. 67.49c ,, मोदजननीम् ,, 9.28c , समीक्ष्यमाणश्च II. 35.3a , वाप्युपद्रवः II. I2.2d मनःसंकल्पसदृशाः V. 68.18c , हिमम प्रीतिः V. 34.I7c मनःसंकल्पसंपाता ,, 39.35c मनस्तुष्टिविवर्धनम् VII. 26.7d मनःसंधाय चक्षुषी [V. 61.12d मनस्त्वरयतीव माम् II. 4.22b मनःसंपातरंहसः VII. I.18b मनस्यपि तथा राम III. 9.6a मनःसंपातविक्रमः V. I.186b मनस्विनः शस्त्रभृतां वरिष्ठाः V. 52.23c , VII. 33.3d मनस्विनी वाक्यमुवाच तारा IV. 24.30c | मनःसमाधाय स देवकल्पम् V. 48.Ic मनस्विनो दाशरथेमहात्मनः II. 50.51b.. मनःस्थामपि वैदेहीम् IV. 30.4c ,, नैर्ऋतराजबान्धवाः VI. 67.173b | मनः स्पष्टुमिवेच्छति VII. 98.4b मनस्विन्यो मनोहरम् , 128.17d मनांसि प्रभया स्वया I. 34.17d मनस्वी तद्गतमनाः I. 77.26a .. ,, हरिपुङ्गवाः VI. 24.21d , प्रियदर्शनः V. 38.57d ,, हरियूथपाः , 42.IId ,, रावणात्मजः VI. 87.rob , हृदयानि च I. 4.34d मनस्वीव महागजः III. 26.15d मनुजपतिसुतां यथा लभध्वम् IV. 41.49c मनश्चक्रे निशाचरः VI. 67.9rd मनुजवर न कालविप्रकर्षः VI. 84.21a मनश्चक्षुश्च भूतानाम् II. 15.35c. ... मनुजेन्द्राय मैथिली ,34.21b मनश्च मे दीनमिहाप्रहृष्टम् III. 57.23a मनुजेन्द्रार्तरूपेण . , 84.9a , ,, हतं भूयः IV. 61.12a | मनुजो मनुजव्याघ्रात् II. II.5c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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