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________________ ४५१ ,, वज्रजाम्बूनदचारुपुखम् VI. (07.165a ,, वधिष्यामि संयुगे VI. 65.45d ,, वन्दमानं रुदती II. 40.4a. ,, वन्यराजो राजेन्द्रम् III. 44.3a ,, वयं वै समाहर्तुम् I. 58.4c ,, वर्धयित्वा राजानम् II. 34.5a ,, ववन्दे महायशाः II.II7.5b , वसिष्ठोऽप्यपालयत् VII. 65.18d , वहत्यनिल: शीघ्रम् II. 93.15c ,, वानरसहस्राणि IV. 26.IOC ,, वानराः प्रेक्ष्य तदा विनेदुः VI. 7407a ,, वानरेन्द्रं मधुरार्थमुक्त्वा V. 36.31b ,, वारिराजात्मजमाजघान VI. 70.6od , वालिनं पश्य मिदं बभाषे IV. 15.31b ,, वाली क्रोधताम्राक्षम् IV. 16.19a ,, वासं भवतः सुखम् II. 54.32b ,, विजित्य मुहूर्तेन VII. 23.19c ,, विना कैकयीपुत्रम् VI. 121.6a ,, ,, प्रियदर्शनम् V. 26 33d ,, विग्रं देववर्णिनम् I. 12.2a ,, विप्रमग्न्यगारस्थम् II. 32.2a ,, विमार्गथ वानराः IV. 4I.31b तं विमोक्षयितुं वीर: VI. I00.25a ,, विराधे विमोक्ष्यामि III. 2.25c ,, विरूपाक्षयूपाक्षौ V. 46.29a ,, विह्वलन्तं प्रसमीक्ष्य रामः VI. 59.138a ,, , सहसाभ्युपेत्य VI. 59.108c ,, विसृज्य ततो रामः VII. 38.15a ,, विहाय सुवित्रस्ताः IV. 19.8c . ,, वीक्ष्य भूमौ पतितं विसंज्ञम् VI. 59.4IC ,, , , , , , 67.67c ,, वृद्धं तरुणी भार्या II. 32.30a ,, वै रुचिरदन्तोष्टम् III. 42.33c ,, ,, वृष काश्चनशैलम म्यम् VI. 74.57b ,, वैश्रवणसंकाशम् II. 16.8a. । तं व्योम्नि शरवर्षिणम् V. 46.25b , व्रजन्तमनुव्रजन V. I8. Iob ,, व्रजन्तं प्रियो भ्राता I. I.25a ,, ,, मुनिवरम् I. 31.17a , शब्द काङ्क्षमाणस्तु III. 69.26a ,, शब्दमभिनिध्याय I. 26.8a , शब्दमवसुप्तस्तु III. 50.1a ,, शब्दं सहसा श्रुत्वा VI. 95.37c ,, शयानं नरव्याघ्रम् VII. 72.1a ,, शरं दिव्यसंकाशम् VII. 69.30c ,, शवं भक्षयामास VII. 77.15c , शापं गृह्यमुक्तवान् VII. 5I.I7b ,,, रोमहर्षणम् VII. 26.58d ,, शिखी प्रतिकूजति II. 56.9b ,, शिष्यः प्रश्रितं वाक्यम् III. 12.15c ,, शीघ्रमभिगच्छ त्वम् IV. II.23a , शूलो भस्मसात्कृत्वा VII. 61.9c ,, शृगं सप्तभिः शरैः VI. 50.73b ,, शैलमिव शैलाभाः VI. 67.3ra ,, शैलं बहुकन्दरम् IV. 49.1gb ,, शैलशृङ्गेमुसलैर्गदाभिः VI. 60.40a ,, शोकमुपधारयन् II. 18.7b ,, शोक राघवः सोढुम् II. 26.7c ,, शोचमानं काकुत्स्थम् IV. 27.33a ,, शोणितपरीताङ्गम् I. 2.LHa ,, श्रुत्वा निनदं भ्रानु: IV. 12.16a ,, समनुप्राप्तम् II. 4.9a , श्रुत्वेन्द्रजितं हतम् VII. I.28b ,, स चिच्छेद नैकधा VI. 97.15d ,,,, दृष्ट्वा महाबाहुः IV. 16.16a ,, समं सर्वतः स्निग्धम् III. 35.26c , समासाद्य लकेशः VII. 25.5a. ,, समासाद्य वेगेन VI. 98.16a ,, समीक्ष्य तदा राजा II. I.4.a " महातेजाः IV. 44.IIa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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