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________________ ४५० तौ भ्रातरौ महाभागौ II. II2.2c , भीमबलविक्रान्तौ IV. 16.25a तो महाग्रहसंकाशौ VI. 90.53a ,, मांसरुधिरौघेण I. I9.6a , मुनी तापसश्रेष्ठौ VII. 51.5a ,, यत्प्रतिविधास्येते VI. 82.22c ,, रजन्यां प्रभातायाम् VII. 94.za ,, राजपुत्रावुपगृह्य मूढौ V. 52.24c , राजपुत्रौ कात्स्न्ये न I. 4.12a ,, ,, सहसाभ्युपेता III. 23.34c ,, राजभवनद्वारि VII. 53.16c ,, राममनुगच्छेताम् II. 36.7c ,, रामं प्राञ्जली भूत्वा VII. 88.2a ,, लोहितस्य प्रियदर्शनस्य III. 63.8a ,, वनानि गिरिश्चैव III. 61.20a ,, वा दशरथात्मजी V. 13.20d ,, , VI. 12.21b ,, वानरवरर्षभौ VI. 31.28b ., वानरवरात्मजौ V. 39.25d , , 55.६d ,, वा नरवरात्मजा V. 68.8d ,, ,, पुरुषशार्दूलौ V. 55.J4c ,, व.सं रघुनन्द नौ III. 74.3b , विचेर तुरन्योन्यम् VI. 40.26c ,, विभीषणसुग्रीवौ VI. 41.27a ,, वीरशयने वीरौ VI. 45 19a , , , , 46.6a ,, वीरौ रामलक्ष्मणौ IV. 3.24b ,, शयानौ समीक्ष्य च VI. 46.11b ,, शरौघैस्तथाकीरें VI. 88.6oa , शैलेष्वाचितानेकान् III. 74.2a , शोणिताक्तौ युध्येताम् IV. 16 30a ,, शोणिताक्षयूपाक्षौ VI. 76.32c ,, संप्रबलितौ वीरौ VI. 45.18a ,, संप्रयुक्तं तु रथं समास्थितौ II. 46.33a | तौ संस्पृशन्तौ चरणौ III. 8.10a ,. स्मारय महाभागे II. 92.8c ,, हत्वा जनभोगार्थे VII. 63.23a ,, ,, तां च दुर्वृत्ताम् III. 19.23a ,, हन्यमानौ नाराचैः VI. 80.29a . ,, हि वीरौ नरवरौ V. 39.42a तं यक्षं योधयामास VII. I4.23c ,, यज्ञं समुपान यन् VII. 86.6d ., ,, समुपाहरत् VII. 90.I-b. ,, यानं शीघ्रमारोप्य II. 36.24a ,, यान्तमनुगच्छन्ति VII. I09. Ioa ,, यान्तमनुयान्ती सा VI. 4.25a ,, रक्षोधिपतिं क्रुद्धम् V. 52.3a , रथं राजपुत्राय II. 39.13a ,, ,, सूर्यसंकाशम् II. 40.13a ,, रथस्थं धनुष्पाणिम् III. 28.Ira ,, रथस्थमथो दृष्ट्वा VI. 4336a ,, राक्षसवनौकसाम् VI. 83.1b ., राक्षसं वानरवीरमुख्यः VI. 70.58b , राक्षसात्मजं च के VII. 4.20a , राजपथमुत्तमम् III. 17.5b , राजमार्गस्थममित्रघातिनम् VI. 60.96a , राजा प्रत्यभाषत VII. 89.Iod ,, रामं द्रष्टुमनस: VII. I08.18c ,, ,, नाभ्यषेचयत् III. 47.13b ,, रामः पुनरब्रवीत् II. 56.24d ,,, पुरुषव्याघ्रः II. 96.15a ,, प्रत्युवाचेदम् III. 3.8a ,, राममेवानुविचिन्तयन्तम् II. 42.35a ,, रामोऽभ्यपतत्क्षिप्रम् II. 34.18a ,, रावणमथाब्रवीत् VII. 18.IIb ,, लक्ष्मणः प्राअलिरभ्युपेत्य VI. 59.45c. ,, लक्ष्मणोत्सृष्टविवृद्धवेगम् VI. 7I.IoTa ,, लक्ष्मणोऽथ बाहुभ्याम् VI. 83.13a , लोपयितुमिच्छसि II. 35.9d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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