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________________ १२४१ संदिदेश महायशाः IV. 31.32b ,, विशेषवित् IV. 41.5d संदिदेशातिमतिमान् IV. 29.29a संदिशस्व महाबलम् VI. 85.16b संदिश्य च ततः सर्वाः V. 23.Ic ,, पुरोहितः VI. I28.26b , राक्षसान्घोरान् III. 55.1a , रामं नृपतिः II. 5.1a संदिष्टश्चापि यानर्थान् II. 52.64c संदिष्टो मारुतात्मजः IV. 2.28b संदिष्टोऽयमिहागतः VI. 17.28b , ,, 18.18c संदिष्टो रजनीचर: VI. 20.13b ,, राक्षसेन्द्रेण V. 44.1a संदिष्टौ मुनिना तेन VII. 93.17a संदीप्यमानां वित्रस्ताम् V.55.la संदृश्य न प्रकम्पन्ते III. 46.7a संदृश्यात्मनि पार्थिवः II. II8.36b संदृष्टव्ययकर्मवित् II. I.26d संदेशं तस्य धीमतः IV. 65.30b , पालयंस्तस्य III. II.85c , संदिशस्व मे IV. 20.1gb संद्रष्टुं यदि मन्यसे III. 74.20b संधानी च महौषधीम् VI. 74 33d " , , I0I.3rd संधाय चान्यं सुमुखम् VI. 76.44a , चापे ज्वलनप्रकाशान् VI. 59.IOIc ,, धनुषा राम: VI. I07.53c संधाय धनुषि क्षुरम् III. 67.9b , , , , , I3b , बाणमन्त्रेण VI. 58.87c , सदृढं चापे III. 44.14a संधायामित्रकर्षणः VI. 88.37b संधितं राजवर्मसु II. 25.41d संधिमिर्भिद्यमानेश्च VII. 35.5IC संधिविग्रहतत्त्वज्ञाः I.7.18c संधिस्ते तेन रोचताम् VI. 35.IId संध्यया चावृता लङ्का VI. I06.23a. ,, प्रतिरञ्जितः VI. 38.13b ,, समभिस्पृष्टम् V. I.58c संध्याकालमनाः श्यामा V. 14.49a संध्याकालमवन्दत VII. 34.27d संध्या कालं विना बभौ III. 23.9b संध्याकाले निलीनानाम् II, II9.4c संध्याकालोऽतिवर्तते I. 44.20d संध्याकालोऽभ्यवर्तत III. II.68d संध्यागत इवादित्यः VI. 82.26e संध्यागतमिवादित्यम् VII. 44.16a संध्याचन्दनरञ्जितम् IV. 28.6b संध्यातपेन संछन्नम् VI. 40.6c संध्यातुल्या प्रभावतः VII. 4.20b संध्यानिवृत्तौ रजनी समीक्ष्य III. 7.24d संध्यानुगतपर्यन्तः IV. 17.6c संध्यानुरक्ते जलदे VI. III.88a संध्या परमदारुणा VI. 23.6b ,, ,, , 4I.I5b संध्याभ्रमिव मारुतः VI. 67.103d संध्याभ्रसंवीत इवाद्रिराजः VI. 65.30d संध्यामन्यास्य पश्चिमाम् II. 50.48b , ,, 53.1b संध्यामन्वास्य रावण VII. 34.6b , वानरः VII. 34.33b संध्यामिव महत्तमः III. 46.5b संध्यामुपासितुं वीर VII. 81.21a संध्यामुपास्य विधिवत् VII. 36.6ra संध्यामेघमिवोन्नतम् V. 42.37d संध्यायास्तनयां लब्ध्वा VII. 4.22a संध्यारक्तमिवाकाशे V. 10.8c संध्यारागोत्थितैस्तानैः IV. 28.5a संध्यार्थे वरवर्णिनी V. 14.49d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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