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________________ संतापयति चन्द्रमाः VI. 41.17b मन्मथ : IV. 1. 23b राक्षसान् VI. 35.22b "" رو "3 " " " "" संतापयसि कर्मभिः II. 35.7d मां भूयः V. 34. 16c संतापयसि मां भृशम् II. 12. 18b संतापयितुमर्हति II. 44.8d संतापश्च निराकृतः VII. 52.1gb संतापस्त्यजतां तव III. 45.15d संतापस्त्यज्यतामयम् I. 74.13b संतापस्य च ते स्थानम् VI. 2.3a संतापहस्ताक्षिशिरोविषाण: IV. 24.17 संतापं तन्न शोभनम् V. 34.14d 6d 32 " رو राघवम् II. 85.17b aziata VII. 61,20c सौमित्रे IV. 1. 36a " " "3 "" न्यज हृद्भतम् VII. 9.45d परमं गताः VI, 45.27b माकुरुष्वह VII. 52. 16d ., कृथा इति II. 52.45d हृदये कृत्वा VII. 62. 12c " संतापः सुमहानासीत् I. 63.250 संतपोऽयं विमुच्यताम् II. 34.53d संतापो वाभितापो वा II. 1813 संतापौषधिवेणुना II. 85.20b संतारं कारयामास 1. 45.8c संतारः प्रविधीयताम् V. 65.27d संतार्यमाणान्वैतरणीम् VII. 21.14a संतिष्ट क्षिप्रमायत्तः VII. 19.roc संतीर्य सह बान्धवाः II. 113.22b संतीयवेक्ष्य तां नादीम् II. 71.1d संतुष्टपञ्चवर्गोऽहम् II. 109.27a संतुष्टस्तेन वाक्येन VI 104.24 संतुष्टः प्रददौ तस्मै I. 16.5a Jain Education International १२४० संतुष्टा फलमूलेन V. 16.20a " संतुष्टो यदिनः पिता II. 21.12b संतेमुन तदीम् II. 55.22d संतोषस्तेन मैथिलि II. 28.17b संत्यक्तं वनदेवतै: III. 60.6d हियमाणया IV. 6.20b संत्यक्त्वा वै समन्ततः VII. 88.7b संत्यजन्ति समाहिताः II. 100.34d संत्यजामि स्वजं चैव II. 14.14C संत्यजिष्यामि जीवितम् II. 64.61b संत्यज्य वरवर्णिनी III. 18.12b "" विविधान्सौख्यान् III. 16.320 सर्वकर्माणि IV. 29.13a संत्वरस्व च माचिरम् II. 30.43d संत्रस्तहृदयाः सर्वे VI. 51. Ioa संत्रस्ता च कृताञ्जलिः II. 10.20d संत्रस्तान्युद्विजन्ति च VI. 22.13d संददर्श ततः सर्वा V. 22.320 संदधानो हि कालेन VI. 35. Sa संदधे कार्मुके बली VI. 108.14d च स धर्मात्मा III. 30.25c "" 33 ,, तु शरासने VI. 79.38d "" "" " " राघवानुजः VI. 90.64b सुमहातेजा: V. 48. 36c संदधौ स्थानमन्यत्र VII. 86. 12c संदर्शयामास तदा VI. 90.24 संदश्य दशनैरोष्ठम् VI. 69.870 धनुषि श्रीमान् III. 64.742 निशिताञ्छरान् VI. 107.22b परवीरघ्नः VI. 102. IC " " ,, 95.3a संदष्टदशनच्छदम् III. 30.17d संदष्टौष्टपुटाः क्रुद्धाः V. 62.23c संदिदेश दशग्रीवः V. 46.3a महाबाहुः III. 26.1c " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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