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________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान वि.सं. १२९५ में १२,००० श्लोक परिमाण बृहद्वृत्ति की रचना की ।" (२) श्री सुमतिगणिजी की बृहद्वृत्ति के आधार पर श्री सर्वराज गणिजीने चौदहवीं सदी में १६०० श्लोक परिमाण संक्षिप्त वृत्ति की । तथा (३) श्री पद्ममन्दिर गणिजी ने वि. सं. १६४६ पौष शुक्ल सप्तमी को जेसलमेर में २३७९ श्लोक परिमाण वृत्ति रची । (४) सत्रवीं सदी में श्री चरित्रसिंह गणिजीने भी आचार्य श्री वर्धमानसूरिजी के जीवन चरित्र को बृहद्वृत्ति से अलग उद्धृत किया है । " इस ग्रन्थ पर मूल सह संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध है । I गणधर सार्द्धशतक आपकी ऐतिहासिक व स्तुतिपरक कृति है । जो पूर्वजों के प्रति विश्वस्त भावनाओं से परिपूर्ण है। महान आचार्यो के प्रति आपके हृदय में अपार श्रद्धाभाव सन्निहित है । “गणधरसार्द्धशतकम्” में जैसा कि नाम ही विदित होता है कि १५० गाथाओं के द्वारा भगवान महावीर के शिष्य गौतम गणधर से लेकर अपने गच्छाधिपति गुरु जिनवल्लभसूरिजी तक के गणधारी आचार्यो की परम्परा का वर्णन एवं गुणानुवाद कर स्तुति की है। विषय का क्रम निम्न प्रकार है १. प्रथम-२ गाथाओं के द्वारा मंगलाचरण के रूप में भगवान ऋषभदेव एवं गणधर ऋषभसेन की स्तुति की गयी है। 19. ८. ९. २. ३. ४. ३-५ गाथाओं के माध्यम से, गौतम स्वामी की प्रशस्ति एवं स्तुति ६-७ गाथाओं के माध्यम से सुधर्मा स्वामी ८-१० गाथाओं के माध्यम से जम्बूस्वामी गणधर सार्द्धशतकम् - बृहत्ति प्रताकार - श्री सुमति गणिजी । श्री गणधर सार्धशतकम् - बृहद्वृत्ति - प्रताकार - श्री चरित्रसिंह गणि । (37) (ar) ८१ अपभ्रंश काव्यत्रयी-मूल सह संस्कृत छाया - ओरियंटल इसटिट्यूट, पृष्ठ सं. ८७-१०७ गणधरसार्द्धशतक- जिनकृपाचंद्रसूरि ज्ञान भण्डार-इंदौर Jain Education International For Private & Personal Use Only बड़ौदा - www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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