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________________ ७७ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान (१) गच्छाधिपति : गच्छाधिपति आचार्य का जब नगर में प्रवेश होता है तब पंच शब्द अर्थात् (तबला, झालर, भेरी, करडी, कंसाला)होता है । लुंछन किया जाता है। मंगलकलश सन्मुख आता है। पंचदीपक की आरती नहीं की जाती है। श्राविकाएं मंगल गीत गाती हैं। यह युगप्रधानाचार्य की प्रवेश विधि संक्षेप में बताई गई है। २. सामान्य आचार्य : सामान्य-आचार्य के नगरप्रवेश में चतुर्विध संघ सन्मुख आता है । शंख बजाया जाता है। श्राविकाएं गहुँली गाती हैं। मंगल कलश और छत्र सन्मुख नहीं आता है । अंगलँछना नहीं किया जाता है । प्रतिलाभ-पृथ्वी पर उपवेशन दिया जाता है । पाटोत्सव नहीं किया जाता है। प्रतिलाभन के लिए पट्ट नहीं रखा जाता है । यह सामान्य आचार्य की संक्षिप्त प्रवेश-विधि है। ३. उपाध्याय : उपाध्याय के नगर प्रवेश में साधु और श्रावक सन्मुख आते हैं। लेकिन साध्वी और श्राविका सन्मुख नहीं आती हैं । शंख नहीं बजता है। मंदिर में प्रवेश करते समय श्राविकाएं गीत नहीं गाती हैं। कदाचित् लुंछन नहीं किया जाता है । प्रतिलाभन में उपाध्याय भूमि पर बैठते हैं, मण्डप में नहीं। तब शंख बजता है, श्राविकाएं मंगल गीत गाती हैं। उपाध्याय को पाक्षिक प्रतिक्रमण में वाहिका नहीं दी जाती है। उपाध्याय के प्रवेश में मंगलकलश और वादित्र कभी कभी नहीं होते हैं। मुष्ठीपट्ट, कम्बली और वस्त्र के रहित कम्बल दिया जाता है । यह उपाध्याय के प्रवेश की संक्षिप्त विधि है। ४. वाचनाचार्य : वाचनाचार्य के नगर प्रवेश में साधु और श्रावक सन्मुख आते हैं। साध्वी और श्राविका सन्मुख नहीं आती हैं । शंख नहीं बजता है। लुंछन कभी कभी नहीं होता है। मस्तक ऊपर कर्पूर का क्षेप नहीं होता है। मंदिर प्रवेश के समय शंख नहीं बजता है, श्राविकाएं गीत नहीं गाती हैं। यदि वाचनाचार्य के पास बड़ा साधु होता है तब उसको प्रथम वंदन किया जाता है। लेख में उसका प्रथम नाम लिखा जाता है। और लेख के बाद वाचनाचार्य का एक ही नाम दिया जाता है। यह वाचनाचार्य की संक्षिप्त प्रवेश विधि आचार्य, उपाध्याय और वाचनाचार्य इन तीनों की चैत्य परिपाटी में शंख बजता है। श्राविकाएं गीत गाती हैं। आचार्य को तीन कम्बल, उपाध्याय को दो कम्बल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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