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________________ ६४ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान आचार्य पदवी वि.सं. ११६९ स्वर्गवास वि.सं. १२११ जिनदत्तसूरिके समकालीन सूरि : बारहवीं तेरहवीं शताब्दी में कई विद्वान आचार्य अवतीर्ण हुए। गुजरात राज्य में यह काल साहित्य उत्कर्ष का स्वर्णिम काल कहा जाता था। (१) हेमचन्द्राचार्य : कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने सार्द्धत्रयकोटी पद्यों की रचना कर सरस्वती भण्डार को अक्षय निधि से भरा था। (२) मलयगिरि : ___ मलयगिरि महामनिषी थे जैनागमों के गंभीर पाठी थे। उनकी प्रतिभा दर्पण की तरह निर्मल थी। संस्कृत भाषा पर उनका अतिशय प्रभुत्व था। (३) रामचन्द्रसूरि : हेमचन्द्राचार्य के शिष्य रामचन्द्रसूरि अद्भुत प्रतिभा के धनी और साहित्यकार थे। आपने “कविकटारमल्ल' की उपाधि प्राप्त की थी। (४) वीराचार्य : आप चन्द्रगच्छ शाखा में हुए थे। गुजरात नरेश जयसिंह आपके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए थे। (५) वादिदेवसूरि : वादिदेवसूरि एक दार्शनिक विद्वान थे। प्रमाणनयतत्त्वलोकालङ्कार जैसी न्याय विषयक उत्तम कृति के वे रचनाकार थे। वाद कुशलता के कारण उनकी प्रसिद्धि वादिदेवसूरि के नाम से हुई। (६) यशोभद्रसूरि : आप जन्म से राजपूत थे। जैन मुनि बनने के बाद महान् तपस्वी सन्त थे। (७) प्रद्युम्नसूरि : प्रद्युम्नसूरि समर्थ व्याख्याकार थे। (८) गुणसेनसूरि : गुणसेनसूरि शास्त्रसिद्धान्तों के विशेषज्ञ थे। उपरोक्त आचार्यों के अलावा और भी अनेक आचार्य हुए जैसे, “देवभद्रसूरि, बालचन्द्रसूरि, अमरचन्द्रसूरि, जिनभद्रसूरि, देवचन्द्रसूरि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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