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________________ ६३ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान गुरुदेव के चमत्कार उनके साधक जीवन की सहज परिणति है। जिस प्रकार किसान अन्न उत्पन्न करने के लिए बीज वपन करता है तो अन्न के साथ-साथ घास स्वतः उग जाती है। वैसे ही गुरुदेव के जीवन में चमत्कार अनायास ही घटित होते थे। गुरुदेव के उपरोक्त चमत्कार उनकी सहज सिद्धि के परिणाम थे। उनकी कठोर साधना, संकल्पबल, योगबल और पुण्य के प्रकर्ष परिणाम स्वरूप दैवी शक्तियाँ उन्हें सहज उपलब्ध थी । उनके जीवन की अलौकिक घटनाओं ने चमत्कार का रूप धारण कर लिया। क्योंकि “पुण्यवान् के पग-पग पर निधान' की कहावतानुसार आपके तपोबल के प्रभाव से अनेक ऐतिहासिक कार्य होते रहे। उन्हीं कार्यो ने चमत्कार का रूप ले लिया है। सम्पूर्ण चमत्कारों से जिनशासन की अभिवृद्धि एवं अपूर्व प्रभावना हुई। आचार्यश्रीने धर्मोपदेश के साथ-साथ अपना पर्याप्त समय आत्म साधना, जनकल्याण में व्यतीत किया। अजमेर स्थित मंदार पहाड़ की उच्चतम चोटी पर अधिकांश समय तक जप, तप, ध्यानादि में लीन होने के कारण उस स्थान पर अब भी आपकी स्मृति रूप में छत्री शाल एवं जल की टंकी विद्यमान हैं। गुरुदेव का जहां अग्निसंस्कार हुआ था वहां पर वि.सं. १२११ में आपके पट्टधर शिष्य मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज ने एक सुंदर स्तूप का निर्माण करवाया। तदनन्तर सं. १२३५ में जिनपतिसूरि जी ने उस स्तूप का जिर्णोद्धार कराया था। अजमेर में भारत वर्ष के कई श्रद्धालु भक्त प्रायः सेवा पूजा के लिये उपस्थित होते हैं, वहां आषाढ शुक्ला एकादशी को प्रतिवर्ष वार्षिक मेले का आयोजन रहता है। गुरुदेव के जन्म स्थान धोलका में भी एक सुंदर भव्य दादावाड़ी की वि.सं.२०४३ मिती माघसुदी एकादशी को प्रतिष्ठा हुई है। भारतवर्ष में प्रायः प्रमुख नगरों और ग्रामों में सैकड़ों दादावाडियाँ हैं। वहाँ श्रद्धालु भक्तजन दर्शन करने आते हैं। भक्तजनों के मनोवांछित पूर्ण करने में कल्पवृक्ष के समान थी जिनदत्तसूरिजी बड़े दादा के नाम से जगत में प्रसिद्ध हैं। समय-संकेत: जन्म वि.सं.११३२, दीक्षा वि.सं. ११४१, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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