SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान परमार शासकों ने भी जैन धर्म की उन्नति में योगदान दिया था। सांभर (वर्तमान में अजमेर) में चौहान वंश का राज्य था । चौहानों का राज्य पहले अहिच्छत्रपुर में था, ये ही चौहानों की राजधानी थी। ३६ इसके बाद इन्हों ने अजमेर में अपनी राजधानी की। इन्ही की एक शाखा ने नाडोल (मारवाड़) पर अपना अधिकार जमाया, इन्हीं के वंशज बुंदी कोटा के अधिपति थे। २४ अजमेर के राजा अर्णोराज और गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह समकालीन थे। जयसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह अर्णोराज से करके वैर को मैत्री में बदल दिया। ३५ चौहानों के समय में जैन धर्म का प्रचार प्रसार अधिक हुआ। प्रसिद्ध जैनाचार्य धर्मघोषसूरि को जयपत्र अर्णोराजने दिया था। ३६ अर्णोराज (आन्नलदेव)की आचार्य जिनदत्तसूरि जी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। अर्णोराज ई. स. ११३३ के पूर्व सिंहासनारूढ हो चुका था। जब उसनें आचार्य श्री के दर्शन किये तब उनके अनुयायियों को एक विशाल जैन मंदिर निर्माण करने हेतु भूमि दान दी थी। यही स्थान दादा जिनदत्तसूरि के पश्चात् दादावाड़ी (दादा का उद्यान) के नाम से विख्यात हो गया। ३७ __अर्णोराज के बाद जगद्देव और उसके बाद विग्रहराज चतुर्थ (विसलदेव)ई.सन् ११५३ में आये। विग्रहराज के बाद महत्त्वपूर्ण राजाओं में अर्णोराज के पुत्र सोमेश्वर, उसके बाद सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय चौहान वंश के राजा हुए । पृथ्वीराज बड़ा वीर और पराक्रमी था। २८ - इसके बाद कुछ समय तक चौहान राजाओं ने अफगानों के अधीनस्थ राजाओं के रूप में राज्य किया। अन्त में शासक हरिराज हुआ। ३९ ३३. ३५. ३६. वही, पृ.२२७ भारत के प्राचीन राजवंश, पृ.२२८. राजपूत राजवंश, पृ.२४० वही, ३४०-३४१ जैन संस्कृति और राजस्थान-डॉ. नरेन्द्र मानावत, पृ.५३० भारत के प्राचीन राजवंश, पृ.२५९ भारत का प्राचीन इतिहास- सत्यकेतु विद्यालंकार, पृ.६३१. ३७. ३८. ३९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy