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________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल दोनों राजा आचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी के उत्कर्ष काल में शासन करते थे । इस समय में जैनों का राजनैतिक जीवन अत्यन्त उच्च कोटि का था । गुजरात के सोलंकी शासनकाल में जाम्ब, दण्ड नायक विमल, महामात्य मुंजाल, सांतू, उदयन, सज्जन, पृथ्वीपाल, तेजपाल, पेथड़ आदि अनेक जैन मंत्रियों ने राजतन्त्र को सुप्रतिष्ठित करने में अद्भुत बुद्धिकौशल और रणशौर्य प्रदर्शित किया है । ४ आबू, किराडू, जालौर, मालवा व बागड़ में परमार वंश के शासक राज्य करते थे। परमार अपनी उत्पत्ति आबू पहाड़ पर मानते हैं । २५ बागड़ में परमारों की राजधानी अर्थणा (उच्छूणक) थी । २६ ई. स. लगभग चामुण्डराज और विजयराज परमार शासक बने । २७ ये शासक आचार्य श्री के समकालीन थे । परमारों की मुख्य शाखा मालवा पर शासन करती थी। चित्तौड़ भी उस समय मालवे के अधिकार में था । इस वंश में भोज सबसे प्रतापी राजा हुआ । २८. भोज बड़ा दानी था। भोज के राज्यकाल में तीन संवत मिलते है । २९ भोज के उत्तराधिकारी के रूप में जयसिंह, उदयादित्य, लक्ष्मदेव, नरवर्मदेव, यशोवर्मदेव आदि राजाओ ने राज्य किया । नरवर्मा तथा यशोवर्मा का राज्यकाल ई.स. १०९४ से ११३८ तक था । नरवर्मा राजा आचार्य जिनदत्तसूरि जी के गुरु श्री जिनवल्लभसूरि जी के कारण जैन धर्म के प्रति श्रद्धालु था । " नरवर्मा ने जिनवल्लभसूरि के उपदेश से चितौड़ में खरतरगच्छ के दो मंदिरो को दो द्रम दैनिक दिये जाने का आदेश दिया था । ३१ आबू के परमार सिन्धुराज, उत्पलराज, प्रतापसिंह आदि राजा हुए। धन्धुक भीमदेव सोलंकी के समकालीन था। विमलशाह मंत्री ने भीमदेव से उसका मेल करवाया था । धन्धुक के उत्तराधिकारी पूर्णपाल, कृष्णराज किराडू के स्वामी बने । गुजरात का जैन धर्म - मुनि श्री जिन विजयजी - पृ. ७ ३२ भारत के प्राचीन राजवंश - विश्वेश्वर नाथ रेउ - पृ. ६८२६. वही, पृ.१७५ २४. २५. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. वही, पृ. १७५ भारत के प्राचीन राजवंश, पृ. १११ वही, पृ. १२३ वही, पृ. १४५ खरतरगच्छ बृहदगुर्वावली, पृ. १३. भारत के प्राचीन राजवंश, पृ. ७३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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