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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान १९३ ३. अनायतन चैत्य चैत्य वर्णन के प्रकार में अनायतन चैत्य को तृतीय क्रम पर रखा गया है। इसमें वेशधारी साधु जो शास्त्र विरुद्ध आचरण करने के कारण साधु नहीं है। जनता को साधु प्रतीत होते हैं। अतः उन्हें साध्वाभास भी कहते हैं। ये जिन मन्दिरों में निवास करते हैं। देव-द्रव्य भक्षण करते हैं। जिन मन्दिर में भोजन शयनादि आशातनाओं में लिप्त रहते हैं। ऐसे मन्दिरों में श्रावक साधु आदि को जाने से ज्ञानादि लाभ नहीं होता है। इसलिए इसे अनायतन कहा गया है। ऐसे चैत्यों में विधि-चैत्य के अभाव में भी पर्वादि अवसरों पर नहीं जाना चाहिए । जहाँ शास्त्र विरुद्ध आचरण होता है ऐसे मन्दिर में नहीं जाना चाहिए। ओघनियुक्ति एवं आवश्यक सूत्र में भी निश्राकृत चैत्यरूप को अनायतन बताया है। अनायतन में जानेवालों को नरकादि में जाना पड़ता है। ४६ अतः जाने का निषेध किया गया है। (२७-३८) ___ उपरोक्त वर्णन के अलावा चैत्यों के प्रकार में भी कहीं-कहीं भिन्नता देखने को मिलती है। श्री श्राद्धदिनकृत्य सूत्र में चैत्य चार प्रकार के बताये गये हैं। ४७ आचार्य वर्य अन्तिम सात गाथाओं के द्वारा वल्लभसूरिजी की महिमा का उल्लेख करते हैं तसु पयपंकयउ पुन्निहि पाविउ जणभमरु । सुद्ध नाग-महु पाणु करंतउ हुइ अमरु । सत्थु हुंतु सो जाणइ सत्थ पसत्थ सहि कहि अणुवमु उवमिज्जइ केन समाणु सहि ? ॥ ४३ ।। नाणस्स दंसणस्स य चरणस्स य जत्थ होइ उवघातो। वज्जिज्ज वज भीरु अणाययण वजओ खिप्पं ।। ओघ नियुक्ति-द्रोणिया वृत्ति-गाथा-७७८ पृष्ठ सं. २२४ उपरोक्त बातों के स्पष्टीकरणोपरान्त तीन प्रकार के चैत्यों का वर्णन किया गया है। श्राद्धदिनकृत्य सूत्र के अनुसार चार प्रकार कै चैत्य है :(१) शाश्वत चैत्य - जैसे नंदीश्वर द्वीपादि (२) भक्ति चैत्य (अ) निश्राकृत चैत्य। (ब) अनिश्राकृत चैत्य । (३) मंगल-चैत्य-मथुरा नगरी में घर मन्दिर प्रत्येक घर में होते हैं। (४) साधार्मिक चैत्य - साधर्मिक बन्धु की मूर्तिवाले चैत्य समझना । प्रकाशन जैनधर्मप्रचारक सभा भावनगर , पृ.सं.५०-५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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