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________________ १५० युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान १२. उपदेशकुलक उपदेशकुलक में ३४ पद्य हैं और गाथा छंद का प्रयोग किया गया है। यह कृति प्रकाशित है। इसका अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है । ८२ उपदेशकुलक के रचनाकाल के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस कुलक के अन्तर्गत आचारांगसूत्र का स्वरूप, युगप्रधानों के नाम, स्वरूप तथा उनके कार्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत उपदेशकुलक में सर्वप्रथम मंगलाचरण के रूप में सर्व भयों से रहित भगवान महावीर स्वामी को वंदन करके तत्पश्चात् युगप्रधान पुरुषों और गुरुभगवंतों की संख्या का प्रमाण और उनका स्वरूप बताया गया है। जैनदर्शन में ग्यारह अंग बताये गये हैं, उसमें प्रथम अंग आचारांगसूत्र है। इसके अन्तर्गत युगप्रधानों का वर्णन करने का संकलन दूसरी गाथा में है। तीर्थंकर भगवंतों को केवलज्ञान होने के पश्चात् वे द्वादशांगी का प्रवचन देते हैं। उस प्रवचन को गणधर ग्रथित करते हैं (गुंथते हैं), उसी द्वादशांगी का भव्यजन श्रवण कर, आचरण करके परमपद मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। अब आचारांग सूत्र का वर्णन करते है: अट्ठारस पय सहस्सोवसोहिए पवरपंचचूलियाओ। पढमंगे सेसेसुं पय-संखा दुगुण-दुगुणाउ ॥ ६॥ आचारांग प्रथम सूत्र है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में नौ अध्ययन है, इनमें से सातवाँ अध्ययन वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पाँच चूलिकाएँ है, इनमें से चार चूलिकाएँ आचारांग में हैं और पाँचवी चूला “निशीथ के नाम से प्रसिद्ध है। आचारांग सूत्र में श्रमणों के लिए आचारसंहिता प्रस्तुत की गई है, वह बहुत उग्र है। इस तरह आचारांग में आचार का गहराई से विश्लेषण हुआ है । हुण्डा अवसर्पिणी दुषमकाल में जब भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ था, उस समय भस्मग्रह लगने के कारण, उस समय के साधु-साध्वी की जीवन-चर्या बताते हैं। ८२. (अ) युगप्रधान जिनदत्तसूरि, अगरचंदजी नाहटा, मूल प्रकाशित, पृ.९१ (ब) कुशल निर्देश, मूल और अनुवाद, वर्ष-२, अंक-५. पृष्ठ ३४ से ३९ आचारांग सूत्र में अढारह हजार पद हैं, उसकी पाँच चूलिकाएँ हैं, शेष अंगों की पद-संख्या आचारांग से उत्तरोत्तर दूगुनी होती है। यह बात सभी अंग उपांगादि में बतायी है । (६.७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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