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________________ भागवती दीक्षा अंगीकार की। कुमारी कला का नाम साध्वी काव्यप्रभाश्री जी, कुमारी दक्षा का नाम साध्वी दिव्यगुणाश्री जी एवं कुमारी नीला का नाम साध्वी नयप्रभाश्री जी रखा गया / आपश्री के परिवार में से एक नहीं पांच-पांच रत्न निकले हैं। पादरा में आपश्री की छोटी दीक्षा हुई / परन्तु बड़ी दीक्षा दादाश्री जिनदत्तसूरिजी की स्वर्गभूमि अजमेर राजस्थान में हुई। बड़ी दीक्षा के पश्चात् करीबन 25 चातुर्मास आपश्री ने अपनी गुरुवर्याश्री जी के सान्निध्य एवं निर्देशानुसार किये। सन्त का जीवन तो बहते हुए निर्मल नीर और गगन में उड़ते हुए पक्षियों के समान है, जो कभी विश्राम ही नहीं करते हैं, और न ही अपना स्थायी ठोर-ठिकाना बनाते हैं। इसी प्रकार का भाव गुरुवर्याश्री मनोहरश्री जी का रहा है। आपके कंठ में जिनेश्वर देव की भक्ति की मिठास जन्म से ही रही है। बोलती है तो सरस्वती बरसती हैं, प्रभुभक्ति में गाती है तो प्रभु दीवानी मीराँ की याद आती है / श्रीमद् देवचन्द्रजी, आनंदघनजी, श्रीमद् राजचन्द्रजी के दर्शन और चिन्तन को आपश्री ने परखा है और अपने चिन्तन से सिरजा भी हैं। आपके नेपथ्य में अपनी गुरुवर्याश्री स्व. प्रवर्तिनी, विश्वप्रेम प्रचारिका श्री विचक्षणश्री जी म.सा.का सानिध्य और सरंक्षण रहा है। महान दीक्षागुरु स्व.प्र.श्री विचक्षण श्री जी म.सा.के हाथों सिरजा गया मनोरह कोहिनूर वर्तमान में जिनशासन की सेविका के रूप में लाखों दीपों की लौ के बीच भी न बुझने वाला अद्भुत दीप हैं, जिसके प्रकाश में हजारों लाखों भटके हुए दीप प्रज्वलित हो उठते हैं। आपका अपने गुरु के प्रति समर्पणभाव और विनयभाव अद्भुत है। गुरुवर्याश्री जी के उपकार का ही ऋण चुकाने के लिए आपका जीवन है। आपके मुख से कभी नहीं निकला कि मैं कुछ हूँ / गुरुवर्याश्री जी की वाणी ही आपके पास अमूल्य निधि हैं। जिसे आप जिनवाणी के प्रसाद स्वरूप जन-जन में बांट रही हैं। आपका अपना कुछ नहीं, ऐसा समर्पण और विनय भला कहां Jain Education InternationBrivate & Personal Usewamy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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