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________________ २६ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन हैं और इन्द्रगण भगवान के रूप को देखकर इतने प्रसन्न और विह्वल हो जाते हैं कि अपने अनेक रूप ही नहीं बनाते अपितु पूरे शरीर में आँखे बनाकर प्रभु को निहारते है । अष्टद्रव्य से शिशु की पूजा करते हैं। बालक को माता के पास रखकर सभी देवगण नन्दीश्वर द्वीप की वंदना करने जाते हैं। आठ दिन तक उत्सव मनाया जाता है। सारा नगर और प्रान्त इस उत्सव में आनंदित हो जाता हैं, वातावरण मधुर बनता हैं, माँ शिशु का मुख निहारकर धन्य हो उठती हैं । (दिगम्बर मान्यता के अनुसार शची माता के पास मायावी शिशु सुलाकर अभिषेक के लिए तीर्थंकर शिशु को ले जाती है ।) बालक का नाम वर्धमान रखा जाता है। उनका लालन-पालन सुख-समृद्धि और लाड-प्यार में होने लगता है। उनके चरण-कमल से कोमलतायें, रूप कामदेव सा सुन्दर था, उनकी कटी और वक्ष सिंह के सदृश्य थे, शरीर चन्द्र सा धवल और शीतल था । शरीर वज्रऋषम नाराच सा मजबूत और सोने से तपी देह लोगों को आकर्षिक करती । पिता की गोदी में खेलते हुए वर्धमान मनोहर लगते हैं, उसकी बालचेष्टायें और क्रीडायें सभी का मन मोह लेती है। आठ वर्ष के राजकुमार मित्रों के साथ खेलते हैं। इसी समय एक मिथ्यात्वी देव उनका परीक्षण साप बनकर करने आता है, लेकिन वर्धमान उसे साधारण रस्सी सा पकड़ कर फेंक देते हैं और दूसरी बार उसके बालक रूप में उसकी पीठपर चढ कर मुष्ठी प्रहार से उसे घायल भी करते हैं और जब वह देव असली रूप में आकर क्षमा करता है तो उसे क्षमा देते हैं १. २. जो आगे बढ आयेगा वह, चढे पीठ पर उतनी बार । इसी नियम से आगे बढकर, चढे पीठ पर राजकुमार । यो मित्रों के साथ खेलकर, जीत गये सिद्धार्थकुमार । देख अवधि से दृष्य इन्द्र ने, कहे सुरों से आत्म-विचार ।' *** क्षमा-याचना कर तू इनसे, ये हैं करुणाकर प्रभु वीर । इनकी करुणा-दृष्टि अमृत-सी, हरती है भव भय की पीर । प्रभु वन्दन कर सविनय सुरने, लिया क्षमा का अनुपम दान । प्रभु गुण गाता गया इन्द्र संग, देवमुक्ति हो अपने स्थान । चरम तीर्थंकर महावीर : आचार्य श्री विद्याचन्द्र सूरि, पृ. १९ वही, पृ. २०, पद सं. ७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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