SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५३ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन जल तुम को गला न पायेगा, तुम भ्राता हो तुम त्राता हो। तुम पिता भुवन भर के दाता, तुम हर अनाथ की माता हो ।' *** कंचनमय झारी रतननि जारी, क्षीर समुद्र जल सुख भरियं शीतल हिमकारं पूजित सारं ढारत अनुपम धार त्रयं पूजत सुरराजं हर्ष समाजं, जिनवर चरणं कमल जुम जग दुःख निवारं सब सुख कारं, दायक सो शिवसुख परमं ॥ *** दुर्गुण से दुर्गुण बढ़ता है, बढ़ा बडी की होड़ पनपती। अग्नि पुंज इधन से त्यों, आग अधिक से अधिक भड़कती।। विष के बाण विषैले अंकुर, फिर पौधा पादप बन जाता। माया के फन्दे बंध जाते, जीव, जीव का अरि बन जाता ॥३ *** चौपाई : १६ मात्रा की इस चौपाई छन्द में चार चरणों का समान तुक और अन्तिम दो गुरू वर्ण या एक गुरू होने चाहिए। यह मेरा तेरा सुत त्रिशला, शिशु पर न्यौछावर हो बोली। रस और दूध से भीग गई दोनों माताओं की चोली ॥४ "वीरायण' : कवि मित्रजी, “जन्मज्योति" सर्ग-४, पृ.९९ “वर्द्धमान पुराण'' : कवि नवलशाह, एकादश अधिकार, पद सं.१९९, पृ.१६० "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, त्रयोदश सर्ग, पृ.१८८ "वीरायण" कवि मित्रजी, “जन्मज्योति", सर्ग-४, पृ.१०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy