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________________ २५२ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन सरसों सम हवै पाप मिथ्या, मेरु समान दुख। प्राण अन्त बुध आप, ऐसी जान न कीजिये ॥ *** रोला: इस छन्द के प्रत्येक चरण में ११ और १३ के विराम से २४ मात्राएँ होती है। महावीर काव्य में कविने रोला छन्द का सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया है सोना-चाँदी, रत्न-धान-धन अतुल सम्पदा, दे डाली, निज हाथों से भूखे नंगों का। और विश्व के लिए त्राण की राह खोजने, चले तपाने, दहकाने, अपने अंगों को। २ *** सार : (ललितपद) इस छन्द के प्रत्येक चरण में १६-२ पर यति से २८ मात्राएँ होती है, जैसे कवि ने "श्रमण भगवान महावीर" काव्य में इस ललितपद छंद को सुंदर ढंग से सँजोया है - गाँवों की सीमा से बहर, एका पेड़ के नीचे, पद्मासन में थे बैठे प्रभु, अपना ध्यान लगाए। प्रतिपल उनकी शुद्ध चेतना, भीतर झांक रही थी, रहे नाक के अग्र भाग पर, अपनी दृष्टि जमाए। ३ *** त्रिभंगी: इस छंद के प्रत्येक चरण में, १०, ८, ८, और ६ के विराम से ३२ मात्राएँ होती हैं। अन्त में गुरू होना चाहिए, एवं जगण वर्जित है सुरपति ने माला पहनाई, फिर कहाँ वीर ! जय हो जय हो। ज्वाला जिसके तन पर जल है, तुम वह जय हो तुम वह लय हो । “वर्द्धमान पुराण' : कवि नवलशाह, द्वितीय अधिकार, पद सं.१३२, पृ.१६ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेजयी, षष्टम् सोपान, पृ.२२३ वही, पंचम् सोपान, पृ.१९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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