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________________ १८९ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन उसकी विह्वलता रूदन देख फटती छाती-१ कवियों द्वारा, प्रस्तुत वात्सलन्य वर्णन को पढ़ते समय सूर का बालवर्णन साकार होने लगता है। जैसे माँ-यशोदा और कृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन सूर ने किया है। उसी तरह का वात्सल्य वर्णन इन कवियों ने भी किया है। ये रचनायें सूर की परवर्ती रचना में होने से उन पर सूर का प्रभाव होना स्वाभाविक हैं जो परलक्षित होती करूणरस: करूणरस का स्थायी-भाव शोक है। कवि ने काव्य के अन्तर्गत भगवान महावीर के त्याग के समय माता-पिता, भाई और पत्नी के प्रति करूणा, चन्दबाला के कष्ट के प्रति करूणा और चराचर जगत के प्रति महावीर की दृष्टि में करूणा आदि विविध प्रसंगो पर करूणरस का रमणीय चित्रण चित्रित किया है - नयनों में आंसू भरे देखते नर-नारी प्रभु के वियोग की धिरी घटा पुर में भारी . *** यह क्या : दीखे नन्दी वर्धन, फूट फूट कर रोते से। सम्बन्धों की वसुधा-उर में प्रेम बीज वर बोते से ॥३ *** महावीर के वनगमन के समय वन के समस्त प्राणी अपना भान भूलकर शोक में डूब गये थे। इस प्रकार जड व चेतन प्रकृति में शोकमय वातावरण छाया हुआ था "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, तृतीय सर्ग, पृ.१११ वही, पृ.१०९ “भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “सन्यस्तसंकल्प', सर्ग-१०, पृ.१२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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