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________________ प्रयोग और परिणाम - १८९ निद्रा • णिमि णो पगामाए, सेवइ भगवं उठाए । जग्गावती य अप्पाणं, ईसिं साई यासी अपडिन्ने ।। भगवान् विशेष नींद नहीं लेते थे । वे बहुत बार खड़े-खड़े ध्यान करते तब भी अपने आपको जागृत रखते थे। वे समूचे साधना-काल में बहुत थोड़े सोए । साढ़े बारह वर्षों में मुहूर्त भर भी नहीं सोए । • णिक्खम्म एगया राओ, बहिं चंकमिया मुहुत्तागं । कभी-कभी नींद सताने लगती तब भगवान् चंक्रमण कर उस विजय पा लेते । वे निरंतर जागरूक रहने का प्रयत्न करते । आहार मायण्णे असणपाणस्स । भगवान् भोजन और पानी की मात्रा को जानते थे और उनका मात्रा के अनुरूप ही प्रयोग करते थे । • ओमोयरियं चाएति, अपुठेवि भगवं रोगेहिं । भगवान् स्वस्थ होने पर भी कम खाते थे । रोग से स्पृष्ट मनुष्य अधिक नहीं खा सकते ! भगवान् रुग्ण नहीं थे, फिर भी अधिक नहीं खाते थे | • नाणुगिद्धे रसेसु अपडिन्ने । भगवान् सरस भोजन में आसक्त नहीं थे । • अदु जावइत्थ लूहेणं, ओयण-मंथु-कुम्मासेणं । भगवान् भोजन के विविध प्रयोग करते थे। एक बार उन्होंने रूक्ष भोजन का प्रयोग किया । वे कोरे ओदन, मंथु और कुल्माष खाते रहे । • एयाणि तिन्नि पडिसेवे, अट्ठ मासे व जावए भगवं । भगवान् ने आठ मास तक उक्त तीन वस्तुओं के आधार पर जीवन चलाया । अपिइत्थ एगया भगवं, अद्धमासं अदुवा मासं पि? अवि साहिए दुवे मासे, छप्पि मासे अदुवा अपिवित्ता । भगवान् उपवास में पानी भी नहीं पीते थे। एक बार उन्होंने एक पक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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