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________________ पद्धति और उपलब्धि - १२५ शरीर भिन्न है'-इस प्रकार का विकल्प ‘अन्यत्व अनुप्रेक्षा' है । यह विकल्प बार-बार दोहराया जाता है तब बह भावना बन जाता है । जप इसी का एक प्रकार है । भावना में चिंतन और कर्म-दोनों की पुनरावृत्तियां की जाती हैं। चिंतन की अपेक्षा अनुप्रेक्षा की सीमा छोटी है । उसकी अपेक्षा इसमें चंचलता की मात्रा कम हो जाती है । अनुप्रेक्षा की अपेक्षा भावना में चित्त की चंचलता और अधिक कम हो जाती है । फिर भी इनमें एकाग्रता का वह बिंदु नहीं बनता जिसे ध्यान कहा जा सके । अनुप्रेक्षा और भावना करतेकरते चित्त निरुद्ध हो जाता है, उस आलंबन पर एकाग्र हो जाता है तब ये ध्यान के रूप में बदल जाती हैं। चिंतन-अनेक विषय, अनेक विकल्प | अनुप्रेक्षा-एक विषय, अनेक विकल्प | भावना-एक विषय, एक विकल्प की पुनरावृत्ति । ध्यान-एक विषय, एक विकल्प, अपुनरावृत्त अथवा निर्विकल्प । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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