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________________ पद्म पुराण अब आप उठकर कहीं शरण लेवी क्योंकि ये प्राण दुर्लभ हैं तिनकी रक्षा करो। यह निकट ही श्रीभगवानका मन्दिर है तहां छिप रहो, क्रूर बैरी तुमको न देख आप ही उठ जावेंगे। ऐसे दोन वचन स्त्रियोंके सुन अर शत्रुका कटक निकट आया देख रावणने लाल ने कीये अर इनसे कहते भए, 'तुम मेरा पराक्रम नहीं जानो हो तातें ऐसे कहो हो, काक अनेक भेले भए वो कहा. गरुड़को जीतेंगे ? सिंहका बालक अनेक मदोन्मत्त हाथियोंके मदकू दूर करै है।' ऐसे रावणक वचन सुन स्त्री हर्षित भई अर बीनती करी "हे प्रभो ! हमारे पिता श्रर भाई पर कुटुम्बकी रक्षा करो।" तब रावण कहते भये-'हे प्यारी हो ! असे ही होयगा। तुम भय मत करो, धीरता गहो।' यह बात परस्पर होय है । इतनेमें राजाओंके कटक आए तब रावण विद्याके रचे विमानमें बैठ क्रोधसे उनके सन्मुख भया, ते सकल राजा अर उनके योधाओंके समूह जैसे पर्वतपर मोटी धारा मेघकी वरसे तैसे बाणोंकी वर्षा करते भए । वह, रावण विद्याओं के सागरने शिलानोंसे सर्व शस्त्र निवारे अर कैयकको शिलासे ही भयको प्राप्त कीए बहुरि मनमें बिचारी कि इन रंकोंके मारणेसे क्या ? इनमें जो मुख्य राजा हैं तिनहीको पकड़ लेवो । तब इन राजावोंको तामस शस्त्रोंसे मूछित कर नागपाशसे बांधलिया। तब इन छै हजार स्त्रियोंने वीनती कर छुड़ाए । तब रावणने तिन राजाओंकी बहुत सुश्रूषा करी । तुम हमारे परमहितु सम्बन्धी हो, तब वे रावणका शूत्वगुण देख महा विनयवान रूपवान देख बहुत प्रसन्न भए । अपनी अपनी पुत्रियों का पाणिग्रहण कराया । तीन दिन तक महा उत्पत्र प्रवरता । ते राजा रावणकी आज्ञा लेय अपने अपने अस्थानको गए । तब रावण मन्दोदरीके गुगोंकर मोहित है चित्त जिसका, स्वयंप्रभ नगर में आए तब इसको स्त्रियोंसहित प्राय: सुनकर कुम्भकरण विभीषण भी सन्मुख गए । रावण बहुत उत्साहसे स्वयंप्रभवगरमें आए अर सुरराजवत् रमते भए । . . अथानन्तर कुम्भपुरका राजा मन्दोदर ताके सणी स्वरूपा ताकी पुत्री तढिन्माला सो कुम्भकर्ष जिसका प्रथम नाम भानु र्ण था, उसने परणी । कैसे हैं कुम्भकर्ण ? धर्मविष प्रासंक्त है बुद्धि जिनकी अर महा योवा हैं अनेक कला गुणमें प्रवीण हैं । हे श्रेणिक ! अन्धमती लोक जो इनकी कीर्ति और भांति कहे हैं कि मांस पर लोहका भक्षण करते हुते, छ महीनाती निद्रा लेते सो नहीं । इनका श्राहार बहुत पवित्र स्वाद रूप सुगंध था, प्रथम मुनियों को आहार देय पर आर्यादिकको आहार देय दुखित भूखित जीवको आहार देय कुटुंब सहित योग्य आहार करते हुते मांसादिककी प्रवृत्ति नहीं थी अर निद्रा इनको अर्धरात्रि पीछे अलप थी, सदा काल धर्ममें लवलीन था चित्त जिनका । चरम शरीर जो बडे पुरुषोंको झूठा कलंक लगाये हैं ते महा पापका बंध करे हैं ऐसा करना योग्य नहीं। अथानन्तर दक्षिणश्रेणीमें ज्योनिप्रभनामा नगर वहां राजा विशुद्धकमल राजा मयका बा मित्र उसके राणी नंदनमाला पुत्री राजीवसरसी सो विर्भाषणने परणी, अति सुन्दर उस राखी सहित विमीषण अति कोतूहल करते भए, अनेक चेष्टा करते जिनको रतिकेलि करते तृप्ति नहीं। कैसे हैं विभीषण ? देवन समान परम सुन्दर है आकार जिनका अर कैती है राणी ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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