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________________ पचपनवा पर्न ३८५ पुत्र लक्ष्मण सोई भया क्रोधायमान सिंह, ताहि तुम गज समान निवारवे ममर्थ नाही, जाक हाथ सागरावर्त धनुप अर आदित्यमुख अमोषवाण अर जिनके भामण्डलमा सहाई सो लोकों से कैसे जीता जाय अर बडे बडे विद्याधरनिके अधिपति जिनसे जाय मिले, महेंद्र मलय हनूमान सुग्रीव त्रिपुर इत्यादि अनेक राजा और रत्नद्वीपका अधिपति बेलंथरका पति सन्ध्या हरद्वीप हैहयद्वीप आकाशतिलक केलीकिल दधिवक्त्र अर महा वलवान विद्याके विभवसे पूर्ण अनेक विद्याधर आय मिले । या भांतिके कठोर वचन कहता जो विभीषण ता पर महा क्रोधायमान होय खड़ग काढ रावण मारवेको उद्यमी भया । तव विभीषणने भी महाक्रोधके वश होय रावणसे युद्ध करनेको वज्रमई स्तम्भ उपाडा । ये दोनो भाई उग्रतेनके धारक युद्धको उद्यमी भए सो मंत्रियोंने समझाय मने किए। विभीषण अपने घर गया, रावण महल गया। बहुरि रावणने कुम्भकर्ण इन्द्रजीतको कठोरचित्त होय कहा जो यह विभीषण मेरे अहि. तमें तत्पर है अर दुरात्मा है वाहि मेरी नगरीसे निकासो या अनर्थीके रहिवेसे क्या ? मेरा अंग ही मोसे प्रतिकल होय तो मोहि न रुचे जो यह लंकाविषै रहै पर मैं याहि न मारूतो मेरा जीवना नाही, ऐसी वार्ता विभीषण सुनकर कही-मैं हूं कहा रत्नश्रवाका पुत्र नाही । ऐसा कह लंकातें निकसा । महा सामन्तनि सहित तीस अक्षौहिणीदल लेयकर रामपै चाल्या ( तीस अक्षीहमी केतक भए ताका वर्णन ) छहलाख छप्पनहजार एकसी हाथी अर एते ही रथ पर उगणीसलाख अडपठहजार तीन सौ तुरंग अर बत्तीसलाख अस्पीहजार पां सौ पयादा । विपत्पन इन्द्रवज्र इन्द्रप्रचण्ड चाल उद्धत एकप्रशनि संघातकाल महाकाल ये विभीषण सम्बन्धी परम सामन अपने कुटुंब अर सब समुदाय सहिन नानाप्रकार शस्त्रनिकरि मंडित रामकी सेनाकी तरफ चले नाना प्रकारके वाहनोंकर युक्त आकाशको पाच्छादितकर सर्व परिवारसहित विभीषण हंसोप आया सो उम द्वीपके समीप मनोग्यस्थल देख जलके तीर सेनासहित तिष्ठा जैसे नन्दीश्वरद्वाप केविगै देव तिष्ठं । विभीषणको आया सुन वानरवंशियों की सेना कम्पायमान भई जैसे शीतकालविणे दरिद्रो कांपे, लक्ष्मणने सागरावर्त धनुष अर सूर्यहास खड़गकी तरफ दृष्टि धरी अर रामने वज्रावर्त धनुष हाथ लिया अर सब मंत्री भेले होय मंत्र करते भए जैसे सिंहसे गज डरै तैसे विभीषणसे वानरवंशी डरे, ताही समय विभीषणने श्रीरामके निकट विचवण द्वारपाल भेजा सो रामपै प्राय नमस्कार कर मधुर वचन कहता भया-हे देव ! इन दोनों माइ. योविणै जबते रावण सीता लाया तबही से विरोध पडा अर आज सर्वथा विगड गई तातें आपके पायन आया है आपके चरणारविन्दको नमस्कार पूर्वक विनती करें है । कैसा है विभीषण ? धर्म कार्यमें उद्यमी है, यह प्रार्थना करी है कि आप शरणागत प्रतिपाल हो, मैं तिहारा भक्त शरणे आया हूं जो आज्ञा होय सो ही करू आप कृषा करने योग्य हैं। यह द्वारपालके वचन सुन रामने मन्त्रि गोंसे मंत्र किया तब रामसे सुमतिकांत मंत्री कहता भया-कदाचित् रावणने कपटकर भेजा होय तो याका विश्वास कहा ? राजानिकी अनेक चेष्टा है पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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