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________________ . चौवनमा पर्ण देती भई पर पुष्पांजलि नाखती भई कि तू कल्याणसे पहुंचियो समस्त ग्रह तुझे सुखदाई हों तेरे विघ्न सकल नाशको प्राप्त होंय तू चिरंजीव हो या भांति परोक्ष असीस देती भई । जे पुण्याधिकारी हनुमान सारिखे पुरुष हैं वे अद्भुत आश्चर्यको उपजाये हैं। कैसे हैं वे पुरुष ? जिन्होंने पूर्व जन्ममें उत्कृष्ट तप व्रत आचरे हैं अर सकल भुवनमें विस्तारे है ऐसी कीर्तिके धारक हैं अर जो काम किसीसे न बने सो करवे समर्थ हैं अर चितवनमें न आवे ऐसा जो आश्चर्य उसे उपजावे हैं इसलिये सर्व तजकर जे पंडित जन हैं वे धर्मको भजो अर जे नीचकर्म हैं वे खोटे फलके दाता हैं इसलिये अशुभकर्म तजो और परम सुखका श्रास्वाद तामें श्रासक्त जे प्राणी सुन्दर लीलाके थारक बे सूर्याके तेजको जीतें ऐसे होय हैं। इति श्रीरविषेणाचार्यविरचितमहापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषावचनिकाविर्षे हनुमानका लंकासों पाछा आवनेका वर्णन करनेबाला तिरेपनवां पर्व पूर्ण भया ।। ५३ ।। अथानन्तर हनुमान अपने कटकमें श्राय किहकन्यापुरको श्राया लंकापुरीमें विघ्नकर आया ध्वजा छत्रादि नगरीकी मनोग्यता हर आया किहकन्धापुरके लोग हनूमानको आया जान बाहिर निकसे नगरमें उत्साह भया यह धीर उदार है पाक्रम जाका नगरमें प्रवेश करता भया सो नगरके नर नारियों को याके देखवेका अतिसंभ्रम भया, अपना जहां निवास तहां जाय सेनाके यथा योग्य डेरे कराए, राजा सुग्रीवने सब वृत्तां। पूछा, सो ताहि कहा बहरि रामके समीप गए । राम यह नितवन कर रहे हैं कि हनुमान आया है सो यह कहेगा कि तिहरी प्रिया सुखसे जीवे है. हनुमानने ताही समय आय रामको देखा, महाक्षीण वियोगरूप अग्निसे सप्लायमान जैसे हाथी दावानल कर व्याकुल होय महाशोकरूप गर्तमे पडे तिनको नमस्कारकर हाथ जोड हर्षित बदन होय सीताकी वार्ता कहता भया, जेते रहस्यके समाचार कहे हुते ते सब वरणन किये और सिरका चूडामणि सौंप निश्चित भया । चिन्ता कर वदनकी और ही छाया हो रही है, आसू पडे हैं, सो राम याहि देखकर रुदन करने लग गए अर उठकर मिले श्रीराम यौं पूछे है-हे हनुमान ! सत्य कहो, मेरी स्त्री जीव है ? तब हनुमान नमस्कार कर कहता भया हे नाथ ! जीवे है भापका ध्यान करे है । हे पृथिवीपते ! श्राप सुखी होवो, आपके विरहकर वह सत्यवती निरंतर रुदन करे है, नेत्रनिके जलकर चतुरमास कर राखा है, गुणके समूहकी नदी सीता ताके केश विखर रहे हैं, अत्यन्त दुखी है और बारम्बार निश्याम नाखती चिंताके सागरमें डूब रही है । स्वभावहीसे दुर्बल शरीर है पर अब विशेष दुर्बल होय गई है। रावणकी स्त्री आराधै हैं परंतु उनसे संभाषण करे नाहीं । निरंतर तिहारा ही ध्यान कर है। शरीरका संस्कार सब तज बैठी है। हे देव! तिहारी राणी बहुत दुःखसे जीवे है । अब तुमको जो करना होय सो करो। ये हनुमानके वचन सुन श्रीर!म चिंतावान भए मुखकमल कुमलाय गया । दीर्घ निश्वास नाखते भए अर अपने जीतव्यको अनेक प्रकार निदते भए । तब लक्ष्मणने धीर्य बंधाया हे महाबुद्धि ! कहा सोच करो हो ? कर्तव्यविष मन धरो अर लक्ष्मण सुग्रीवसे कहता भया-हे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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