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________________ ३८० पद्म पुराण फिरें ते दोनों वीर तिनका तू सेवक भया अर रावणने कहा कि तू पवनका पुत्र नाहीं काहू और कर उपजा है | तेरी चेष्टा अकुलीनकी प्रत्यक्ष दीखे है जे जारजात हैं तिनके चिह्न अंग में नाही दीखे जब अनाचारको ' चरै तब जानिए यह जारजात है, कहा केशरी सिंहका बालक स्यालका श्राश्रय करे, नीचका आश्रयकर कुलवन्त पुरुष न जीवें अब तू राजद्वारका द्रोही है, निग्रह करवे योग्य है तब हनूमान यह वचन सुन हंसा अर कहता भयान जानिए कौनका निग्रह होय । या दुर्बुद्धिकर तेरी मृत्यु नजीक आई है कैवक दिनमें दृष्टि परेगी । लक्ष्मण सहित श्रीराम बडी सेना से आवे हैं सो किसीसे रोके न जांय जैसे पर्वत से मेघ न रुकै श्रर जैसे कोऊ नानाप्रकारके अमृत समान आहार कर तृप्त न भया श्रर विषकी एक बूंद भखें नाशको प्राप्त होय तैसे हजारों स्त्रीन कर सू तृप्तायमान न होय अर परस्त्री की तृष्णाकर नाशको प्राप्त होयगा । जो शुभ र अशुभकर मेरी, बुद्धि होनहार माफिक होय सो इन्द्रादि कर भी अन्यथा न होय, दुर्बुद्विविधै सैकडों प्रिय न कर उपदेश दीजिए तोहू न लगें, जैसा भवितव्य होय सोही होय । विनाशकाल आवे तत्र बुद्धिका नाश होय, जैसे कोऊ प्रमादी विषका भरा सुगंध मधुर जल पीवै तो मरणकोपाचे तैसेहे रावण ! तू परस्त्रीका लोलुपी नाशको प्राप्त होयगा । तू गुरु परिजन वृद्ध मित्र प्रिय बांधव मंत्री सबनिके वचन उलंघकर पापकर्म प्रवृत्ता है सो दुराचाररूप समुद्रविषै कामरूप भ्रमर के मध्य आय नरक के दुःख भोगेगा । हे रावण ! तू रत्नश्रवा राजाके कुलक्षय कारण नीच पुत्र भया, तोकर राक्षस वंशिनिका क्षय होयगा आगे तेरे वंशमें बडे २ मर्यादाके पालनहारे पृथिवीविषै पूज्य स्वर्ग मुक्ति के गमन करणहारे भए अर तू उनके कुलविषै पुल्लाक कहिए न्यून पुरुष भया दुर्बुद्विमित्र को कहना निरर्थक है, जब हनूमानने यह वचन कहे तब रावण क्रोधकर आरक्त होम दुर्ख वन कहता भया - यह पापी मृत्युसे नाहीं डरै है, वाचाल है तातें शीघ्र ही याके हाथ पांव ग्रीवा सांकलोंसे बांध कर पर कुवचन कहते ग्राममें फेरो, क्रूर किंकर लार पर घर घर यह वचन कहो –— भूमिगोचरियोंका दूत आया है याहि देखहु अर स्वान बालक लार सो नगरकी लुगाई धिक्कार देवें और बालक धूल उडावें और स्वान भौंके, सव नगरीविषै या भांति इसे फेरो दुःख देवो । --- तब वे रावणकी आज्ञा प्रमाण कुवचन बोलते ले निकसे सो यह बन्धन तुडाय ऊंचा चल्या जैसे यति मोहफांस तोड मोचपुरीको जाय, आकाशतें उछल अपने पगोंकी लातोंकर लंका का बडा द्वार ढाया तथा और एक छोटे दरवाजे ढाहे इन्द्रके महिल तुल्य रावणके महिल इनूमानके चरणोंके घातसे विखर गए जिनके वडे बडे स्तम्भ हुते पर महल के आस पास रत्न सुवर्णका कोट हुता सो चूर डारा जैसे वज्रपातके मारे पर्वत चूर्ण होजांय तैसे रावणके घर हनूमानरूप वञ्चके मारे चूर्ण होय गए । यह हनूमानके पराक्रम सुन सीताने प्रमोद किया अरे हनूमानको बंधा सुन विषाद किया हुता तब वज्रोदरी पास बैठी हुती ताने कहा – हे देवि ! वृथा काहेको रुदन करे यह सांकल तुडाय आकाश में चला जाय है सो देख | तब सीता अति प्रसन्न भई अर चिचमें चितवती भई यह हनूमान मेरे समाचार पतिपै जाय कहेगा सो आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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