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________________ चौतीसवा पव भरी महासुगंधरूप है अर कहीं एक दावानलकर जले वृक्ष तिनकर शोभा रहित है जैसे कुपुत्रकर कलंकित गोत्र न शोभै । अथानन्तर सीता कहती भई कंटकतके ऊपर बाईं ओर काग बैठा है सो यह तो कलहकी सूचना करे है अर दूसरा एक काग वीरवृनपर बैठा है सो जीत दिखावे है ताते एक मुहूर्त स्थिरता करहु या मुहूर्तविषै चले आगे कलहके अंत जीत है मेरें चित्तमें ऐसा भासे है तब चया एक दोऊ भाई थंभे बहुरि चले, आगे म्लेच्छनिको सेना दृष्टि पडी ते दोऊ भाई निर्भय धनुषवाण धारे म्लेच्छनिकी सेना पर पड़े सो सेना नाना दिशानिको भगगई तब अपनी सेनाका भंग जान अर बहुत म्लेच्छ तर पहिर आए सो वे भी लीलामात्रमें जीते तब वे सब म्लेच्छ धनुष वाण डार पुकार करते पतिपै जाम सारा वृत्तांत कहने भए । तब वे सब म्लेच्छ परम क्रोधकर धनुषवाण लीए महा निर्दई वडी नसू आए । शस्त्रनिके समूहकरि संयुक्त वे काकोदन जातिके म्लेच्छ पृथिवी पर प्रसिद्ध सर्व मांस भक्षी राज नहूकरि दुर्जय ते कारी घटा समान उमंडि आये तब लक्ष्मणने कोपकर धनुष चढाया तब वन कम्पायमान भया, नवे जीव कांपने लग गए तब लक्ष्मणने धनुषकेशर बांधा तब सब म्लेच्छ डरे वनमें दशों दिशांधेकी न्याई भटकते भए । तब महा भयंकर पूर्ण म्लेच्छनिका अधिपति रथसे उतर हाथ जोड प्रणामकर पायन पडा अपना सब वृतांत दोऊ भाइन कहता भया । हे प्रभो ! कौशांबी नगरी है तहां एक विश्वानल नामा वालेताके प्रतिसंध्यानामा स्त्री तिनके रोद्रभूतनामा पुत्र सो द्यूतकलामें प्रवीण बाल अवस्था र कर्मका करणहारा सो एक दिन चोरीतें पकड़ा गया श्रर सूली देनेको उद्यमी भए तब एक दयावान् पुरुषने छुडाया सो मैं कांपता देश तज यहां आया कर्मानुयोग कर काकोदन जाति के म्लेच्छों का पति भया महाभ्रष्ट पशु समान व्रतक्रिया रहित तिष्ठ हूं। अब तक महासेना के अधिपति बडे बडे रजा मेरे सन्मुख युद्ध करने को समर्थ न भए, मेरी दृष्टिगोचर न आए सो मैं आपके दर्शन मात्र ही से वशीभूत भया । धन्य भाग्य मेरे जो मैंने तुम पुरुषोत्तम देखे, अब मोहि जो आज्ञा देवो सो करू । आपका किंकर आपके चरणारविंदकी चाकरी सिर पर धरू र यह विन्ध्याचल पर्वत पर स्थानक निधिकर पूर्ण हैं, आप यहां राज्य करहु मैं तिहारा दास, ऐसा कहकर म्लेच्छ मूर्छा खायकर पायन पडा जैसे वृक्ष निर्मल होय गिर पडे ताहि विह्वल देख श्रीरामचन्द्र दयारूप वेलकर वेढे कल्पवृक्ष समान कहते भए, उठ उठ डरे मत वालखिल्यको छोड तत्काल यहां मंगा र ताका आज्ञाकारी मंत्री होय कर रह म्लेच्छनिकी क्रिया तज, पापकर्मते निवृत्त हो, देशकी रक्षा कर । या भांति कियेते तेरी कुशल है, तब याने कही हे प्रभो, ऐसा ही करूंगा यह बीनती कर आप गया और महारथका पुत्र जो वालखिल्य ताहि छोडा, विनयसंयुक्त ताके तैलादि मर्दनकर स्नान भोजन कराय श्राभूषण पहिराय रथपर चढ़ाय श्रीरामचन्द्रके समीप लेजानेको उद्यमी किया, तब बालखिल्य परम आश्चर्यको प्राप्त होय विचारता भया, कहां यह म्लेच्छ महाशत्रु कुकर्मी अत्यन्त निदयी और मेरा ऐता विनय करे है सो जानिये है जो भाज ३७ Jain Education International CE For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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