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________________ अठाईसा पर्व मई भयानक सर्प फंकारें तब कैयक तो कानोंपर हाथ धर भागे अर कैयक धनुषको देखकर दूर ही कीलेसे ठाढ़े कांपे हैं समस्त अंग जिनके अर मुद गये हैं नेत्र जिनके, अर कैरक ज्वरकरि व्याकुल भए अर कई एक धरतीपर गिर पड़े अर कई एक ऐसे भए जो बोल न सके भर कई एक मूर्खाको प्राप्त भए अर कैयक धनुष के नागोंके स्वासकार जैसे वृतका सूखा पत्र पवनसे उडा उडा फिरे तैसे उडते फिरें और कैयक कहते भए जो अब जीवने घर जावें तो महादान करें। सकल जीवोंको अभयदान देवें अर कैक ऐसे करते भए यह रूपवती कन्या है तो कहा याके निमित्त प्राण तो न देने। अर कैयक कहते भए यह कोई मायामई विद्याधर आया है सो राजावोंके पुत्रोंको वाधा उपजाई है और कैयक महाभाग ऐसे कहते भए अब हमारे स्त्रीते प्रयोजन नाहीं, यह काम महा दुखदाई है । जैसे अनेक साधु अथवा उत्कृष्ट श्रावक शीलवत थारे हैं तैसे हम भी शील ब्रत थारेंगे। धर्म ध्यानकर काल व्यतीत करेंगे। या भांति सर्व परःङ मुख भए अर श्रीरामचन्द्र धनुष चढ़ावनेको उद्यमी उठकर महामाते हाथीकी नाई मनोहर गतिसे चलते जगतको मोहते धनुषके निकट गए सो धनुष रामके प्रभावते ज्वालारहित होय गया जैसा संदर देवोपनीत रत्न है तैसा सौम्य हो गया । जैसा गुरुके निकट शिष्य होय जाय, तब श्रीरामचन्द्र धनुषको हाथ में लेकरि चहायकर खेचते भए सो महाप्रचण्ड शब्द भया, पृथिवी कंपायमान भई । कैसा है धनुष ? विस्तीर्ण है प्रभा जाकी, जैसा मेघ गाजे तैसा धनुषका शन्द भया मयूरनिके समूह मेषका आगमन जान नाचने लगे। जिसके तेजके आगे सूर्य ऐसा भासने लगा जैसा अग्निका कण भासै अर स्वर्णमई रजसे भाकाशके प्रदेश व्याप्त होगए यह धनुष देवाधिष्ठित है सो आकाश में देव थन्य धन्य शब्द करते भए अर पुष्पों की वर्षा होती भई । देव नृत्य करते भए तब श्रीराम महा दयावंत धनुषके शब्दसे लोकनिको कंपायमान देख धनुषको उतारते भए लोक ऐसे डरै मानों समुद्रके भंवरमें आगए हैं तब सीता नेत्रनिकरि श्रीरामको निखरती भई, कैसे हैं नेत्र ? पवनकर चंचल जैसे कमलोंका दल होय तात अधिक है कांति जिनकी अर जैसा कामका वाण तीक्ष्ण होय तैसे तीक्ष्ण हैं। सीता रोमांचकर संयुक्त मनकी वृत्तिरूपमाला जो देखते ही इनकी ओर प्रेरी हुती बहुरि लोकाचार निमित्त हाथमें रत्नमाला लेकर श्रीरामके गलेमें डारी लज्जासे नम्रीभूत है मुख जाका, जैसे जिनधर्मके निकट जीवदया तिष्ठे, तैसे रामके निकट सीता माय तिष्ठी । श्रीराम अतिसुन्दर हुने सो याके समीपते अत्यन्त सुन्दर भासते भए, इन दोनों के रूपका दृष्टान्त देने में न आवै पर लक्ष्मण दूजा धनुष सागरात, क्षोभको प्राप्त भया जो समुद्र उस समान है शब्द जिसका, उसे चढाय बँचते भए सो पृथिवी कम्पायमान. भई । माकाशमें देव जयजयकार शन्द करते भए अर पुष्पवर्षा होती भई । लक्ष्मण धनुषको चढाय बँचकर जब बारापर दृष्टि धरो तब सब डरे लोकनिको भयरूप देख आप घनुषकी पिणच उतार महाविनय संयुक्त रामके निकट पाए जैसे ज्ञानके निकट वैराग्य पावै । लक्ष्मणका ऐसा पराक्रम देख चन्द्रगतिका पठाया जो चन्द्रवर्द्धन विद्याधर आया हुता सो अतिप्रसन्न होय अष्टादश कन्या विद्याधरोंकी पुत्री लक्ष्मण को दीनी । श्रीराम लक्ष्मण दोऊ धनुष लेय महाविनयवन्त For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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