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________________ २४६ बड़ा-पुराण राणी कहे है - हे देव ! मैं ऐसा कौन पाप किया जो पहिले तो पुत्र हरा गया अर अब पुत्री हरी जाय है मेरे तो स्नेहका अवलंबन एक यह शुभचेष्टित पुत्री ही है। मेरे तिहारे सर्व कुटुंब लोगनिके यह पुत्री ही आनन्दका कारण है मो पापिनीके एक दुख नाहीं मिटै अर दूजा दुख आय प्राप्त होय है । याति शोकके सागर में पडी रुदन करती हुई राखीको राजा धीर्य बंधाय कहते भए- हे राणी ! रुदनकर कहा जो पूर्वं इस जीवने कर्म उपाजें हैं तिनके उदय अनुसार फले हैं, संसाररूप नाटकका आचार्य जो कर्म भो समस्त प्राणियोंको नचावै है तेरा पुत्र गया सो अपने अशुभके उदयसे गया, अब शुभ कर्मका उदय है तो सकल मंगल ही होवेंगे, ऐसे नाना प्रकार के सार वचनोंकर राजा जनकने राणी विदेहाको धीर्य बंधाया तब राखी शांतिको प्राप्त भई ॥ बहुरि राजा जनक नगरके बाहिर धनुवशाला के समीप जाय स्वयंवर मंडप रचा अर सकल राजपुत्रोंके बुलायबेको पत्र पठाए सो पत्र बांच बांच सर्व राजपुत्र आए अर अयोध्या नगरीको हू दूत भेजे को माता पिता संयुक्त रामादिक चारो भाई भाए राजा जनक बहुत श्रादर कर पूजे । सीता परम सुंदरी सात सौ कन्याओंके मध्य महिलके ऊपर तिष्ठे । बड़े २ सामंत याकी रवा करें अर एक महा पंडित खोजा जाने बहुत देखी बहुत सुनी है । स्वर्णरूप वेंतकी लडी बाके हाथमें, सो ऊंचे शब्दकर कहै है प्रत्येक राजकुमारको दिखावै है । हे राजपुत्री ! यह श्रीरामचन्द्र कमल लोचन राजा दशरथके पुत्र हैं तू नीके देख अर यह इनका छोटा भाई लक्ष्मीवान लक्ष्मण है, महा ज्योतिको धरै पर यह भाई महाबाहु भरत है अर यह यातैं छोटा शत्रुम है । यह चारों ही भाई गुणन के सागर हैं । इन पुत्रोंकर राजा दशरथ पृथिवीको भली भांति रथा करे है, जाके राज्यमें भयका अंकुर नाहीं पर यह हरिबाहन महाबुद्धिमान् काली घटा समान है प्रभा जाकी पर यह चित्ररथ महागुणवान, तेजस्वी, महासुंदर है और यह हर्मुख नामा कुमार यति मनोहर महा तेजस्त्री है । यह श्रीसंजय, यह जय, यह भानु, यह सुप्रभ, यह मंदिर यह बुध, यह विशाल, यह श्रीधर, यह वीर, यह बंधु, यह भद्रवल, यह मयूर कुमार इत्यादि अनेक राजकुमार महापराक्रमी महा सौभाग्यवान निर्मल वंशके उपजे चन्द्रमा समान निर्मल है। atra जिनकी महा गुणवान भूषणोंके धरण हारे परम उत्साहरूप महाविनयवंत महाज्ञानी महा चतुर आइ इकट्ठे भए हैं और यह संकाशपुरका नाथ याके हस्ती पर्वत समान अर तुरंग महाश्रेष्ठ र रथ महामनोज्ञ अर योधा अद्भुत पराक्र के धारी अर यह सुरपुरका राजा, यह रंधपुरका राजा, यह नन्दनीकपुरका राजा, यह कुंदपुरका अधिपति, यह मगध देशका राजेन्द्र यह कंपिल्य नगरका नरपति, इनमें कैयक इदवाकु वंश अर कैयक नागवंशी र कैयक सोमवंशी र कैयक उग्रवंशी अर कैथक हरिवंशी र कैयक कुरुवंशी इत्यादि महागुणवन्त जे राजा सुनिये हैं ते सर्व तेरे अर्थ आए हैं। इनके मध्य पुरुष जो वज्रावर्त धनुषको चढ़ावे ताहि तू वर जो पुरुषों में श्रेष्ठ होयगा उसीसे यह कार्य होयगा या भांति खोजा कही अर राजा जनक सबनिको अनुक्रमसे धनुषकी ओर पठाए सो गए। सुन्दर है रूप जिनका सो सर्व ही धनुषको देख कंपायमान होते भए । धनुषमें से सर्व ओर अग्नि की ज्वाला विजुली समान निकसे अर माया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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