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________________ पाण्डवपुराणम् सर्वैः संवेष्टितः पार्थपुत्रः प्रौढमना महान् । पञ्चास्यविक्रम सिंहो यथा मचमहागजैः ॥२२८ पार्थो गाण्डीवचापेन वेष्टयित्वा रिपून्स्थितान् । खपुत्रं वारयामास वायुर्वा धनसंचयान् ॥ युध्यमानेषु योधेष्वेवं चायानवमो दिनः । तदा शिखण्डिना युद्धे समाहूतः पितामहः।।२३० तदाभाणीन्महापार्थः प्रचण्डं च शिखण्डिनम् । गृहाण मे परं बाणं वैरिविध्वंसनक्षमम् ॥ येन बाणेन संदग्धं मया खण्डवनं पुरा । तेनाग्राहि तदा बाणः स चण्डेन शिखण्डिना ॥ वैवस्वत इबोत्तस्थे शिखण्डी खण्डयन्रिपून् । तदा परस्परं लग्नौ श्रीगाङ्गेयशिखण्डिनौ ॥२३३ एकेनापि तयोर्मध्ये जीयते न परस्परम् । युध्यमानौ च तौ देवैः सिंहाविव सुशंसितौ ॥२३४ निर्भसितः शिखण्डी तु धृष्टद्युम्नेन धीमता । भो शिखण्डिन्मया दृष्ट आहवो विहितस्त्वया। अद्यापि गुरुगाङ्गेयो रणे गर्जति मेघवत् । अद्यापि स्यन्दनं तस्य पताका च विजृम्भते॥२३६ पार्थः पूरयतेऽद्यापि पृष्टिं पिष्टमहारिपुः । वैराटस्तव साहाय्यं विदधाति महारणे ॥२३७ निशम्येति शिखण्डी तु तर्जयन्धन्विदुर्धरम् । गाङ्गेयमाजुहावेति धनुःसंधानमावहन् ।।२३८ तावद्रुपदपुत्रेण बाणैः सहस्रसंख्यकैः । छाद्यते स्म सुगाङ्गेयो मेधैर्वा व्योममण्डलम् ॥२३९ घेर लिया। प्रौढ मनवाला, महान् , सिंहसमान-पराक्रमी अभिमन्यु मत्तमहागजोंके समान सर्व शत्रुओंके द्वारा घेरा गया । जैसे वायु मेघसमूहको तितर बितर कर देता है, वैसे अपने पुत्रको वेष्टित करके खडे हुए शत्रुओं को अर्जुनने गांडीघ-धनुष्यके द्वारा हटाया और अपने पुत्र को उसने उनके वेष्टणसे मुक्त किया । इस प्रकार शूर वीर लडते लडते नौवा दिन प्राप्त हुआ। उस दिन शिखंडीने पितामहको युद्धमें युद्धके लिये बुलाया । तब महापार्थने अर्जुनने प्रचण्ड शिखण्डीको कहा, कि शत्रुओंको नष्ट करने में समर्थ ऐसा मेरा बाण मैं तुझे देता हूं, जिस बाणसे मैंने पूर्व में खाण्डववन दग्ध किया था। उस चंड-शिखंडीने उसे ग्रहण किया और यमके समान - शत्रुओंको नष्ट करना प्रारंभ किया। उससमय श्रीगांगेय और शिखंडी अन्योन्य लडने लगे ॥ २२६-२३३ ॥ उन दोनोंमें कोई भी अन्योन्यको नहीं जीतता था । लडनेवाले वे दोनों देवोंके द्वारा सिंहके समान प्रशंसित हुए ॥२३४ ॥ बुद्धिमान धृष्टद्युम्नने शिखण्डीकी इसप्रकार निर्भर्त्सना की, “ हे शिखण्डिन् भीष्मके साथ तेरी लडाई हो रही है यह मैंने देखा परंतु अद्यापि गुरु भीष्माचार्य रणमें मेघवत् गर्जना कर रहे हैं । अद्यापि उनका रथ और उनकी पताका जैसे की तैसी है अर्थात् तूने उनका रथ चूर्णित नहीं किया और पताकाभी छिन्न भिन्न नहीं की है। जिसने महाशत्रुओंका पेषण किया है ऐसा अर्जुन अद्यापि तेरे पीछे रहकर तुझे साहाय्य दे रहा है तथा वैराट भी तुझे इस महारणमें साहाय्य दे रहा है।" ॥२३५-२३७॥ धृष्टद्युम्नका भाषण सुनकर धनुर्धारियोंमें दुर्धर ऐसे भीष्माचार्य का तिरस्कार करते हुए शिखण्डीने धनुष्य जोडकर आह्वान दिया। उतनेमें उस द्रुपदपुत्रने जैसे आकाश हजारों मेघोंसे आच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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