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________________ एकोनविंशं पर्व आयोधनमिदं सर्व शून्यं भूयात्तथापि च । त्वां नेष्यामि यमागारं प्राघूर्णीकृत्य तस्य वै ॥ इत्युक्त्वा तौ समालगौ रणं कर्तुं कृपोज्झितौ । तदा द्रोणः समायासीद् धृष्टद्युम्नं महाहवे ॥ द्रोणेन च क्षुरप्रेण जह्वेऽस्य स्यन्दनध्वजः । धृष्टार्जुनः पुनस्तस्य जहार च्छत्रसद्ध्वजान् । शक्तिबाणं मुमोचाशु द्रोणो विद्रावितापरः । धृष्टार्जुनः क्षणार्धन तं चिच्छेद सुतीक्ष्णधीः ।। धृष्टार्जुनेन निर्मुक्ता लोहयष्टिः प्रहृष्टिहृत् । छिन्नान्तरे च तातेन रणे ज्ञातेन सजनैः ।।२१९ द्रोणस्तां वञ्चयित्वाशु गृहीत्वा वसुनन्दकम् । करे च दक्षिणे खड्गं चचाल प्रधनोद्यतः॥ एतस्मिन्नन्तरे भीमो गदाहस्तो जघान तम् । कलिङ्गतनयं न्यायनिपुणं च मदोद्धतम् ।। कौरवांस्त्रासयन्काष्ठाः कष्टं खलु समागतान् । कुर्वनेमे रणे शत्रून्दलयन्स बलोद्धतः ॥२२२ गदाघातेन संचूर्ण्य रथान्सप्तशतप्रमान् । वैरिभिः पूरयामास भीमो भूमिबलीनिव ॥२२३ सहस्रैकं गजानां च चूरयित्वा रणोद्धतः । जयलक्ष्मी समापाशु गदया पावनिः परः॥२२४ एतस्मिन्नन्तरे धृष्टार्जुनस्यासिं समुज्ज्वलम् । द्रोणश्चिच्छेद छेदज्ञः कुठार इव शाखिनम् ॥ अभिमन्युकुमारेण छिन्नो द्रोणस्य सद्रथः । दुर्योधनसुतश्चायाल्लक्ष्मणाख्यः सुलक्षणः ॥२२६ स चिच्छेद सुभद्रायास्तनुजस्य शरासनम् । अन्यं चापं समादायावारयत्स परान रिपून॥ दूंगा" ऐसा अर्जुनने भाषण किया। ऐसा बोलकर दयासे रहित होकर वे दोनों युद्धके लिये उद्युक्त हुए। उस समय उस महायुद्धमें द्रोण धृष्टद्युम्नके साथ लडनेके लिये आये । द्रोणाचार्यने बाणके द्वारा धृष्टद्युम्नके रथका - ध्वज हरण किया और धृष्टार्जुनने पुनः उनके छत्र और उत्तम ध्वज हरण किये । शत्रुओंको भगानेवाले द्रोणाचार्यने शक्तिबाण शीघ्र छोडा। अतिशय तीक्ष्णबुद्धिवाले धृष्टार्जुनने क्षणार्द्धहीमें उसे तोड दिया। हर्षकी विनाशक लोहयष्टि धृष्टार्जुनने द्रोणाचार्यके ऊपर फेक दी। सज्जन जिनको जानते हैं ऐसे द्रोणाचार्यने बीचहीमें उसे तोड दिया। इस प्रकार द्रोणाचार्यने उस को वंचित कर दाहिने हाथ में वसुनंदक नामका खङ्ग लिया और लडनेमें तत्पर वे वहांसे आगे चले गये ॥ २१२-२२० ।। इस समय जिसके हाथ में गदा है ऐसे भीमने न्यायनिपुण और मदोद्धत कलिंगदेशके राजाके पुत्र को प्राणरहित किया। बलसे उद्धत ऐसा भीम रणमें आये हुए कौरवोंको परिमित कष्टसे पीडित कर शत्रुओंको दलित करता हुआ रणागण में युद्धक्रीडा करने लगा। गदाके आघातसे सातसौ रथोंका चूर्ण करके भीमने वैरियोंसे भूमिबलिकी मानो पूर्णता की। अतिशय रणोद्धत भीमने एक हजार हाथियोंको चूर्णकर शीघ्र जयलक्ष्मी को प्राप्त किया । जैसे कुठार वृक्ष को तोडता है, वसे छेदको जाननेवाले द्रोणाचार्यने धृष्टार्जुनकी चमकनेवाली तरवार बीचहीमें तोड दी ।। २२१-२२५ ॥ अभिमन्युकुमारने द्रोणाचार्यका उत्तम रथ छिन्न किया । उस समय दुर्योधनका पुत्र सुलक्षणी लक्ष्मण युद्धके लिये आया। उसने सुभद्रा. सुत अभिमन्युका धनुष्य तोड दिया । तब अभिमन्युने दूसरा धनुष्य प्रहण करके अन्य शत्रुओंको पां. ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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