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________________ ३८४ पाण्डवपुराणम् अश्वत्थामा महींपीठे मुमूर्छ पतितो द्रुतम् । अर्जुनं समुवाचेदं तावदुत्तरसारथिः ॥१४३ वाहयामि रथं नाथ दुर्योधननृपं प्रति । संधानं कुरु धानुष्काहिताञ्जहि महात्वरान् ॥१४४ पार्थः प्रोवाच दुर्जेयान्विपक्षान्सन्मुखांस्तदा । कुर्वन्विविधवाक्यैश्च मर्म नर्मविधायिभिः ।। तैः समं विषमं व्योम छादयद्भिर्महाशरैः। युयुधे युद्धशौण्डीरो धनंजयमहीपतिः ॥१४६ तावत्तक्रममुल्लङ्घय राजबिन्दुः समाययौ । पार्थ च वेष्टयन्सैन्यैर्गजवृन्दैमंगेन्द्रवत् ॥१४७ एकेन तेन पार्थेन समर्थन धनुष्मता । चिच्छेद वाहिनी तस्य मेघमालेव वायुना ॥१४८ गजान्रथान्ध्वजानश्वान्लक्ष्यीकृत्य सुलक्ष्यवित् । निहत्य पातयामास धरायां स धनंजयः ॥ १४९ । कांस्कान्हन्मि नृपानत्र हिंसया पातकं यतः । ध्यात्वेति सुरराट्सनुर्मोहनास्त्रं मुमोच च ॥ सद्धाटकफलेनेव तेन सर्वे विमोहिताः। पेतुः पृथ्वीतले तूर्ण निर्जीवा इव भूमिपाः ॥१५१ तेषां छत्रध्वजादीनि गजवाजिमहारथान् । आदायाभूत्तदा तुष्टोऽर्जुनो निर्जितशात्रवः॥ विराटो वरवादित्रै व्यैः सद्भटकोटिभिः। तत्क्षणे कारयामास क्षणं श्रीपार्थभूपतेः ॥१५३ तावता धर्मपुत्रोऽपि मोचयामास गोकुलम् । प्रहृष्टः शिष्टसंसेव्यः समभूनिर्भयो महान् ॥ प्रकार बोलने लगा॥ १३९-१४३ ॥ हे प्रभो, मैं दुर्योधन राजाके प्रति आपका रथ ले जाता हूं और आप महात्वरायुक्त जो धनुर्धारी शत्रु हैं उनके ऊपर संधान करके उनको प्राणरहित करो। मर्मस्थलमें नर्म उत्पन्न करनेवाले-उपहास उत्पन्न करनेवाले अनेक प्रकारके वाक्योंसे दुर्जयशत्रुओंको अपने सम्मुख करनेवाला अर्जुन उनके साथ बोलने लगा तथा आकाशको आच्छादित करनेवाले महाबाणोंसे युध्द चतुर धनंजयराजा उनके साथ लडने लगा ॥१४४-१४६।। उस समय युध्दका क्रम उलंघकर और गजसमूहके समान सैन्योंके द्वारा सिंहके समान अर्जुनको वेष्टित करनेवाला राजबिन्दु नामक राजा आया। समर्थ धनुर्धारी उस अकेले अर्जुनने वायु जैसे मेघसमूहको छिन्न भिन्न करता है,वैसी उसकी सेना छिन्न कर डाली। लक्ष्यको उत्तम प्रकारसे जाननेवाले धनंजयने हाथी, रथ, ध्वज और घोडोंको लक्ष्य करके सबको मारकर पृथ्वीपर गिरा दिया ॥ १४७-१४९ ।। "इस युध्दमें किस किस राजाको मैं मारूं ? क्यों कि हिंसा करनेसे पातक लगता है " ऐसा विचार करके इन्द्रके पुत्रने मोहनास्त्र छोड दिया । धत्तूरके फलभक्षणके समान उस मोहनास्त्रसे वे सब मोहित हुए और पृथ्वीतलपर मानो जीवरहित होकर वे राजा शीघ्र पड गये ॥ १५०-१५१ ॥ उनके छत्र, ध्वज आदिक और हाथी, घोडा, महारथ लेकर जिसने शत्रुको जीता है ऐसा अर्जुन आनंदित हुआ ॥ १५२ ॥ [ गोकुल-मोचन और अभिमन्युका उत्तराके साथ विवाह ] विराटराजाने उत्तम वाघोंसे, नृत्योंसे और उत्तम भटोंसे तत्काल श्रीअर्जुनका अभिनंदनका उत्सव किया। उस समय धर्मपुत्रने भी गोकुलको मुक्त कराया। जिससे सज्जनसेव्य धर्मपुत्र आनंदित और अतिशय निर्भय हुआ।। १५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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