SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९८ पाण्डवपुराणम् अस्मिन्नहो महाभीमे भीमे जीवति जीवितम् । नास्माकं शतसंख्यानां वर्तते विधिवेदिनाम् ॥ हन्तव्योऽयं दुरात्माथास्माभिर्विस्मितमानसैः । येन केनाप्युपायेन छद्मना वा महोत्कटः ॥ अस्मिन्सति सतां नूनमस्माकं राज्यपालनम् । भविता नास्ति कर्तव्ये कर्तव्या हि प्रतिक्रिया ।। यावन वर्धते वैरी तावदुच्छेद्य इत्यलम् । वर्धितो व्याधिवन्नूनं ध्वंसयत्यखिलं बलम् ॥ ८७ व्याधयो दस्यवो वैरिव्रजा दुष्टाश्च श्वापदाः । उत्पत्तिमात्रतश्च्छेद्या दुर्द्रमा भीतिदा यथा ॥ ८८ वर्धमाना इमे नूनं दुःखं ददति दारुणम् । वृद्धेष्वेतेषु नो सातं शरीरे विषवृद्धिवत् ।। ८९ समुच्छेद्यः समुच्छेद्यो भीमोऽयं भीतिदायकः । अन्यथा ज्वलयत्यस्मान्यतो वृद्धोऽत्र वह्निवत् ॥ इति संमन्त्र्य मन्त्रीशैस्तं हन्तुं स कृतोद्यमः । दुर्योधनो धराधीशो दुर्ध्यानाहतमानसः । ९१ अन्यदा पावनिं सुप्तं ज्ञात्वा दुर्योधनो नृपः । छद्मना बन्धयामास बन्धुबन्धुरस्नेहहा ।। ९२ नीत्वा तं जाह्नवीतीरममुञ्चत्तजले रुषा । तदा भीमो जजागार सुखसुप्तोत्थितो यथा ॥ ९३ तत्कर्तव्यं परिज्ञाय भीमस्तद्बन्धमाच्छिदत् । प्रसारित भुजोऽप्यस्थाच्छय्यायामिव तजले ॥ 1 शत्रुके नाशार्थ अनेक युक्तियां सोचता है । यह महाभयंकर भीम जबतक जीवित रहेगा तबतक दैवका स्वरूप जाननेवाले हम सौ भाईयों का जीवित नहीं रहेगा । विस्मित मनवाले हमारे द्वारा जिस किसी उपाय से अथवा निमित्त से यह महातीव्र शत्रु मारने योग्य है । यह जबतक रहेगा तबतक हम सज्जनों का राज्यरक्षण निश्चयसे नहीं होगा, क्योंकि किसी आवश्यक कार्यमें बाधा उपस्थित होने पर इलाज करनाही पडता है । जबतक वैरी वृद्धिंगत नहीं होता है तबतक उसका घात करना चाहिये । अधिक रोग बढनेपर मनुष्यका सर्व बल नष्ट होता है वैसे शत्रु पूर्ण बंढने पर वह सर्व बलका नाश करता है । जैसे बुरे वृक्ष उत्पन्न होते ही नष्ट करना चाहिये क्यों कि वे भीतिदायक होते हैं वैसे उनके समान रोग, चोर, शत्रुसमूह और दुष्ट हिंस्र सिंहादिक प्राणी भी भीतिदायक हैं एव उनका भी उत्पत्ति होते ही नाश करना चाहिये । पाण्डव यदि बढते जायेंगे तो भयंकर दुःख देंगे। शरीरमें विषवृद्धि होनेसे जैसे सुख नहीं होता है वैसे इनके बढनेसे भयंकर दुःख उत्पन्न होगा ॥ ८१-८९ ॥ इस भीतिदायक भीमका अवश्य नाश करनाही चाहिये अन्यथा धधकती हुई आगके समान यह भीम हमें जला देगा । दुर्ध्यानसे जिसका चित्त मारा गया है ऐसे पृथ्वीपति दुर्योधनने मंत्रियों के साथ विचारकर भीमको मारनेका निश्चय किया ।। ९०-९१ ॥ [ भीमको विषादिसे मारने का प्रयत्न ] किसी समय वायुपुत्र [ भीम ] सोया हुआ है ऐसा जानकर बन्धुके सुन्दर स्नेहका नाश करनेवाले दुर्योधनने कपटसे उसे गंगा के किनारेपर लेजाकर क्रोधसे गंगाके जलमें फेक दिया । तब भीम मानो सुखसे सोये हुए मनुष्य के समान जग गया । यह कौरवों का कार्य है ऐसा समझकर उसने अपना बंधन तोड दिया और अपने हाथ फैलाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy