SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ पाण्डवपुराणम् बमारोरू वरौ सोच पीवरौ कनकधुती। कामेन कल्पितौ स्तम्भौ खावासस्थितये यथा॥१६२ जथे अघघनाघातघस्मरे लड़िके जगत् । अस्य रेजतुरुभिद्रे कामस्य शरधी इव ।। १६३ क्रमौ च क्रमतः कनौ विक्रमाक्रान्तसंक्रमौ । जगनती स्तुतौ तस्य भातः स्म कौरवेशिनः ॥ नखा नक्षत्रसंकाशाः क्षत्रसेव्या बभुर्भृशम् । दर्पणा इव संन्यस्तास्तस्य रूपनिरीक्षणे ।। १६५ अनौपम्यं महारूपं तस्य वर्णयितुं क्षमः। कः क्षितौ क्षितिपालानामीशितुः कौरवेशिनः।।१६६ ततः कुन्ती सुतं भीममसौष्ट सौष्ठवान्वितम् । युधिष्ठिरसमं शिष्टं विशिष्टं गुणगौरवैः॥१६७ यस्माद्भीतिमर्वेदमावरीणां रणशालिनाम् । तस्मादाख्यायि लोकेन स भीमो भीमदर्शनः॥ महाकायो महाकान्तिर्महावीर्यो महागुणः। महामना महारूपी भीमोऽभादमिभूषणः ॥१६९ ततो धनंजयो जज्ञे धनंजयो महौजसा। धनं जयं च संप्राप्तः शत्रुदारुधनंजयः॥ १७० अर्जुनोऽर्जुनसंकाशो सद्विसर्जनसज्जनः। अर्जको यशसां लोके तस्याभूत्तृतीयः सुतः ॥ १७१ इस राजकुमारने सुवर्णकान्तिके धारक सुंदर और पुष्ट दो जांधे धारण की थी मानो मदनने अपने महलकी दीर्घ कालतक स्थितिके लिये बनाये हुए दो खंबे ही खडे किये हो ॥१६०-१६२॥ पापके निबिड आघातको नष्ट करनेवाली और जगतको उल्लंघनेम समर्थ ऐसी इस राजकुमारकी उन्निद्रकान्तियुक्त दो जांघे मदनके बाण रखनेके शरधी-तरकसके समान दीखती थीं॥१६३॥ कौरवोंके स्वामी युधिष्ठिरके सुंदर दो चरण क्रमपूर्वक अपने पराक्रमसे सर्वत्र प्रवेश करनेवाले, जगद्वंद्य, और स्तुत्य थे। अतएव वे शोभायुक्त थे ॥१६४॥ उसके नख नक्षत्रके समान सुंदर और क्षत्रियोंसे सेवनीय थे। भूपालोंको अपना रूप देखने के लिये मानो वे दर्पणके समान थे। अर्थात् रूप देखनेके लिये चरणके अंगुलियोंपर वे नख स्थापन किए हुए दर्पणके समान दीखते थे। पृथ्वीके पालन करनेवाले भूपालोंकेभी स्वामी ऐसे कौरवेश युधिष्ठिरका महारूप अनुपम था। इस लिये उसका वर्णन करने में कोई समर्थ नहीं था ॥१६५-६६॥ तदनंतर कुन्तीने सौंदर्यसे युक्त भीम पुत्रको जन्म दिया। वह भीम भी युधिष्ठिरके समान विशिष्ट गुणोंसे गौरवयुक्त व शिष्ट- सज्जन था॥१६७॥ इसका ‘भीम ' नाम अन्वर्थक था। क्यों कि रणमें पराक्रमसे लढनेवाले शत्रुवीरोंको भी इससे भय होता था इसलिये लोगोंने भयंकर दर्शनवाले द्वितीय कुन्तीपुत्रका 'भीम' नाम प्रसिद्ध किया। यह भीम पुत्र पुष्ट शरीरवाला, महाशक्तिमान् , महाकान्तिवान् , अतिशय उदार, महागुणी, महासुंदर और पृथ्वीका भूषण था॥१६८-१६९॥ तदनंतर कुन्तीसे धनंजय- अर्जुन' नामक पुत्र हुआ। यह महान् तेजस्वी होनेसे धनंजय-आग्निके समान दीखता था। युद्धमें इसे धन और जय मिलता था इसलियेभी यह 'धनंजय' कहा जाता था। और शत्रुरूपी इन्धनको जलानेमें यह धनंजय-अग्नि समान था इत्यादि कारणोंसे इसे 'धनंजय' यह अन्वर्थक नाम था। इसको 'अर्जुन' नाम भी था। अर्जुनके समानचोदीके समान शुभ्र वर्णका होनेसे इसे अर्जुन नाम था। यह पुत्र उत्तम लोगोंको धन देनेवाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy