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________________ इस प्रकार तीन जगत् के नाथ भगवान श्री मल्लिनाथ की स्तुति कर परमानंद से गद्गद् होकर इंद्रों ने अपने आज्ञाकारी देव एवं देवांगनाओं के साथ उन्हें मस्तक झुका कर भक्तिपूर्वक नमस्कार किया ।। ४७।। कर्म आदि शत्रुओं के जीतनेवाले भगवान श्री मल्लिनाथ मल्लिका पुष्प की सुगन्धि से भी उत्कट सुगन्धिवाले दिव्य शरीर के धारक थे; इसलिए देवों ने उनका अन्वर्थ नाम श्रीमल्लिनाथ रक्खा था ।।४८।। देवगण मेरु पर्वत पर जिस समय समस्त कार्य समाप्त कर चुके, उस समय जो कुछ उनके जन्म-कल्याणक सम्बंधी कार्य शेष बचा था, उसे पूरा करने के लिए वे तीन जगत के गुरु भगवान श्रीमल्लिनाथ को लेकर पहिले के ही समान बड़े ठाट-बाट से पुनः मिथिलापुरी लौट आये ।।४६।। राजा कुम्भ के आँगन में एक महामनोहर विशाल सिंहासन विद्यमान था । समस्त अंगों में पहिने हुए भूषणों से भूषित भगवान श्रीमल्लिनाथ को इन्द्र ने बड़े आनन्द से उस पर विराजमान किया ।।५०।। इन्द्राणी भगवान के गर्भ गृह में गई एवं माता को जगाया तथा बन्धु-बांधवों के साथ राजा कुम्भ की मायामयी निद्रा दूर की । जहाँ पर भगवान श्रीमल्लिनाथ को विराजमान किया था, वहाँ पर वे आये एवं आनन्द से गद्गद् होकर उदय से प्राप्त तेजपुन्ज || के समान अपने पुत्र को देखा।।५।। मेरु पर्वत पर जो भी अभिषेक के समय कार्य किया गया था, वह सब भगवान के माता-पिता से इन्द्र ने आनन्दपूर्वक निवेदन किया । उत्तमोत्तम वस्त्र, आभूषण एवं माला आदि से समस्त देवों के | साथ भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की तथा “आप समस्त लोक में धन्य हैं, पूज्य हैं, उत्कृष्ट हैं, मान्य हैं, स्तुति करने योग्य || हैं, सौभाग्य के पार को प्राप्त हैं । अर्थात् आपसे बढ़कर कोई भाग्यवान नहीं है । विशेष क्या ? जब आप स्वयं तीर्थंकर भगवान के माता-पिता हैं, तब समस्त लोक के आप माता-पिता हैं।" इस प्रकार मनोहर शब्दों में भक्तिपूर्वक इन्द्र ने उनकी स्तुति की ।।५२-५३।। तत्पश्चात् इन्द्र के कहे अनुसार भगवान श्री मल्लिनाथ के पिता राजा कुम्भ ने पुरवासी एवं अपने बन्ध-बांधवों के साथ श्री जिनेन्द्र भगवान के मंदिर में महापूजा एवं अभिषेक आदि का महान उत्सव किया ।।५४।। महोत्सव के बाद अनेक प्रकार की बन्दनवारें, ध्वजाएँ एवं गीत, नृत्य तथा वाद्य आदि से ||६१ मिथिलापरी में भी बड़ा उत्सव मनाया गया ।।५५।। भगवान के पिता राजा कुम्भ ने अनेक प्रकार के दान देकर अनेक बन्धुओं, दीन, अनाथ तथा बन्दियों आदि की भी इच्छाएँ अच्छी तरह पूर्ण कर दी थीं ।।५६।। जिस समय समस्त नगर निवासीजन आनंद में मग्न थे, उस समय भगवान के माता-पिता आदि के साथ विशिष्ट स्वानुभूति प्रदर्शित करने Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002720
Book TitleMallinatha Purana
Original Sutra AuthorSakalkirti Acharya
AuthorGajadharlal Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size8 MB
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