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________________ ( ३५) उपरिम वेयक से चय कर मेघरथ नामका पुत्र हुआ और सहस्रायुध का जीव कान्त प्रभ नामका अहमिन्द्र, इन्हीं घनरथ की दूसरी रानी प्रीतिमती के दृढरथ नामका पुत्र हुआ। दोनों भाईयों में अटूट प्रेम था। दोनों के उत्तम कन्याओं के साथ विवाह हुए। क बार राजा घनरथ पुत्रों के साथ क्रीडा करते हुए राजसभा में विराज- १८-६४ । १३७-१४१ मान थे । वहां के मुर्गे परस्पर लड़ रहे थे, कोई किसी से हारता नहीं था। यह देख राजा धनरथ ने अपने पुत्र मेघरथ से इसका कारण पूछा । उत्तर में मेघरथ ने उन मुर्गों के पूर्व भव तथा उनके लड़ाये जाने का कारण बताया। मुर्गों को लड़ाने वाले विद्याधर अपने पूर्व भव सुनकर बहुत प्रसन्न हुए ६५-७३ । १४१-१४२ और राजा घनरथ तथा युवराज मेघरथ के अत्यन्त कृतज्ञ हुए । उन्होंने अपना वैरभाव छोड़ दिया। राजा घनरथ तीर्थंकर थे अतः लौकान्तिक देवों ने उन्हें तप कल्याणक के ७३-७६ । १४२ लिये संबोधित किया। राजा मेघरथ राज्य पद पर आरूढ़ हुए। किसी समय दो भूतजाति के देवों ७७-६४ । १४२-१४४ ने उनका उपकार मानकर उनसे अकृत्रिम चैत्यालयों के दर्शन करने की प्रार्थना की। राजा ने उनके सहयोग से अढ़ाई द्वीप के चैत्यालयों के दर्शन किये। एक बार राजा मेघरय अपनी प्रियाओं के साथ देवरमण वन में गये । वहां ९५-१५६ । १४४-१५० स्मरण करते ही दो भूतों ने आकर नृत्य आदि के द्वारा इनका मनोविनोद किया। अकस्मात् वह पर्वत हिलने लगा तो घनरथ ने बाएं पैर के अंगूठे से उसे दबा दिया। उसी समय एक विद्याधरी पति की भिक्षा मांगती हुई उनके सामने पायी । राजा ने पैर का अंगूठा ढीला कर लिया जिससे उसके नीचे दबा हुआ विद्याधर आकर अपनी चपलता की क्षमा मांगने लगा। रानी प्रिय मित्रा के कहने से राजा धनरथ ने उस विद्याधर के पूर्व भव सुनाये जिससे वह बहुत नम हुआ। तीर्थंकर घनरथ केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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