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________________ ( ३४ ) दशम सर्ग तदनन्तर वज्रायुध की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ । उसी समय १-२० । १२०-१२२ उनके पिता क्षेमंकर तीर्थंकर को केवलज्ञान उत्पन्न हुअा। वज्रायुध पहले तीर्थंकर की वन्दना करने के लिये गया। सुरासुर पूजित तीर्थंकर भगवान् की प्रभुता देख उसे बहुत हर्ष हुआ। तीर्थकर की पादवन्दना से लौटकर वह आयुध शाला में गया तथा चक्ररत्न की पूजा कर प्रसन्न हुआ। चक्रवर्ती बज्रायुध चौदह रत्न और नौ निधियों का स्वामी था। एक समय चक्रवर्ती बज्रायुध राजसभा में बैठे थे उसी समय एक विद्याधर २१-३५ । १२२-१२३ उनकी शरण में आया। उसके पीछे ही एक विद्याधरी हाथ में तलवार लिये हुई पाकर कहने लगी कि महाराज आपको इस अपराधी की रक्षा नहीं करना चाहिये। मुग्दरधारी एक वृद्ध पुरुष ने उसी समय आकर उन दोनों के क्रोध का कारण कहा। चक्रवर्ती वज्रायुध ने अवधिज्ञान से उनके भव ज्ञात कर सभासदों को ३६-११० । १२३-१३१ सुनाये। एक समय चक्रवर्ती वज्रायुध ने कामसुख से विरक्त हो तीन हजार राजाओं १११-१३६ । १५१-१३४ के साथ मुनि दीक्षा धारण करली । उनकी तपस्या का वर्णन । जब मुनिराज तपस्या में लीन थे तब अश्वग्रीव के जो दो पुत्र पञ्चमभव में चक्रवर्ती के द्वारा मारे गये थे और असुर हुए थे वे मुनिराज का घात करने के लिये प्रवृत्त हुए परन्तु उस समय पूजा के लिये प्रायी हुई रम्भा और तिलोत्तमा अप्सरा को देख कर वे भाग गये मुनिराज वज्रायुध समाधि मरण कर उपरिम प्रवेयक में अहमिन्द्र हुए। सहस्रायुध ने अपने पिता मुनिराज की तपस्या से प्रभावित हो दीक्षा धारण करली और अन्त में उपरिम ग्रंवेयक में अहमिन्द्र पद प्राप्त किया। एकादश सर्ग जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तर तट पर पुष्कलावती १-१७ । १३५-१३७ देश है । उसकी पुण्डरी किरणी नगरी में राजा धनरथ रहते थे उनकी मनोहर नामकी स्त्री थी । वज्रायुध का जीव अमितविक्रम अहमिन्द्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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