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________________ ३३० स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [गा० ४४२एकदिनादिप्रमाणम् एकद्वित्रिचतुःपञ्चषट्सप्ताष्टनवदशादिदिवसपक्षमासऋत्वयनवर्षपर्यन्तं परिहरति चतुर्विधाहारं त्यजति । किमर्थम् । कर्मणां निर्जरार्थ ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाणाम् अष्टकर्मप्रकृतीनां निर्जरार्थ गलनार्थ क्षयार्थम् , एकदेशकर्मक्षयनिमित्तम् । तथाहि वसुनन्दियत्याचारे “इत्तिरियं जावज्जीवं दुविहं पुण अणसणं मुणेदव्वं । इत्तिरिय साकंखं णिरावकंख हवे बिदियं ॥" अनशनं पुनरित्तिरिय-यावजीवभेदाभ्यां द्विविधं ज्ञातव्यम् , इत्तिरियं साकांक्षं कालादिमिः सापेक्षम् , एतावन्तं कालमहमनशनादिकमनुतिष्ठामीति, निराकांक्षं भवेत् द्वितीयं यावज्जीवम् आमरणान्तादपि न सेवनम् । साकांक्षानशनस्य स्वरूपमाह "छहमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणाणि । कणगेगावलिआदीतवोविहाणाणि णाहारे॥" अहोरात्रमध्ये द्वे भक्तवेले तत्रैकस्यां भक्तवेलायां भोजनमेकस्यां परित्यागः एकभक्तः । चतसृणां भक्तवेलानां परित्यागश्चतुर्थ एकोपवासः । षण्णां भक्तवेलानां त्यागः षष्ठो द्विदिनपरित्यागः । द्वौ उपवासौ । अष्टानां परित्यागः अष्टमः त्रयः उपवासाः। दशमः चत्वारः उपवासाः, द्वादशः पञ्चोपवासाः । आवलीशब्दः प्रत्येकम् , कनकावलीमुरजमध्यविमानपङ्किसिंहविक्रीडितादीनि । अनाहारः अनशनं षष्ठाष्टमदशमद्वादशैर्मासार्धमासादिभिश्च यानि क्षमणानि कनकैकावल्यादीनि च यानि तपोविधानानि, तानि सर्वाण्यनाहारः यावत् उत्कृष्टेन षण्मासास्तत्सर्व साकांक्षमनशनमिति । तथा चारित्रसारे । दृष्टफलं मन्त्रसाधनाद्यनुद्दिश्य क्रियमाणमुपवसनम् अनशनमित्युच्यते। तत् किमर्थम् । प्राणीन्द्रियसंयमरागद्वेषाधुच्छेदबहुकर्मनिर्जरणशुभध्यानादिप्राप्त्यर्थम् । सकृद्भोजनचतुर्थषष्ठाष्टमदशमद्वादशपक्षमासऋतुअयनसंवत्सरेषु अशनपानखाद्यखाद्यलक्षणचतुविधाहारनिवृत्तिः ॥४४१॥ उववासं कुव्वाणो आरंभं जो करेदि मोहादो। तस्स किलेसो अपरं कम्माणं णेव णिजरणं ॥४४२ ॥ छाया-[उपवासं कुर्वाणः आरम्भं यः करोति मोहतः । तस्य क्लेशः अपरं कर्मणां नैव निर्जरणम् ॥] तस्य प्रोषधव्रतिनः पुंसः क्लेशः क्षुधातृषादिबाधया कायक्लेशः श्रमः निरर्थः निष्फलः । अपरम् अन्यच्च तस्य कर्मणां निर्जरणं प्रसन्नता पूर्वक अशन, पान, खाद्य और लेह्यके भेदसे चारों प्रकारके भोजनको छोड़ देता है वही अनशन तपका धारक है । वसुनन्दि यत्याचारमें कहा है-अनशन दो प्रकारका होता है, एक साकांक्ष और एक निराकांक्ष । 'इतने काल तक मैं अनशन करूँगा' इस प्रकार कालकी अपेक्षा रखकर जो अनशन किया जाता है उसे साकांक्ष अनशन कहते हैं, और जीवन पर्यन्तके लिये जो अनशन किया जाता है उसे निराकांक्ष अनशन कहते हैं। साकांक्ष अनशनका खरूप इस प्रकार कहा है-एक दिनमें भोजनकी दो वेला होती है । उसमेंसे एक वेला भोजन करे और एक वेला भोजनका त्याग करे, इसे एकभक्त कहते है । चार वेला भोजनका त्याग करनेको चतुर्थ कहते हैं, यह एक उपवास हैं। छ: वेला भोजनका त्याग करनेको षष्ठ कहते हैं, यह दो उपवास हैं। इसी प्रकार आठ वेला भोजनका त्याग करनेको अष्टम कहते हैं, यह तीन उपवास हैं । दस वेला भोजनका त्याग करनेको दशम कहते हैं । दशम अर्थात् चार उपवास । बारह वेला भोजनका त्याग करनेको द्वादश कहते हैं । द्वादश नाम पाँच उपवासका है । इसी तरह एक मास और अर्धमास आदि तक भोजनको त्यागना तथा कनकावली एकावली आदि तप करना साकांक्ष अनशन है । साकांक्ष अनशन उत्कृष्टसे छ: महीना तक किया जाता है । चारित्रसारमें भी लिखा है-मंत्र साधन आदि लौकिक फलकी भावनाको त्यागकर प्राणिसंयम, इन्द्रियसंयम, राग द्वेषका विनाश, कर्मोंकी निर्जरा और शुभध्यान आदिकी सिद्धिके लिये एक बार भोजन करना, या चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश, पक्ष, मास, ऋतु, अयन और संवत्सरमें चारों प्रकारके आहारका त्याग करना अनशन है ॥ ४४१ ॥ अर्थ-जो उपवास करते हुए मोहवश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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